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त्रिस्तुतिक--मत-मीमांसा ।
हुए ‘इन झगडों का मूल किसने रोपा ?' चिमनलाल के इस प्रश्न का उत्तर घड कर कहते हैं कि
“ जिसने मेरे लेख की समालोचना को छोड, विषमालोचना लिख छपवाई तिस का दादागुरुनें तो-मूल रोपा : और तिस के शिष्य प्रतिशिष्यों ने तथा तिन के पक्षियों ने- झूठ रूप पानी सींच के तीन चार थुई संबंधी झगडों के वृक्ष बढाये ! और आज तक ऐसे २ झूठ लेख छपवा के बढाते ही रहे हैं ! तो तुम लेखक महाशय को क्या जवाब दो गे ? जे कर कहों गे कि हमारे दादागुरु तो — अंध थे !
और हमारे गुरु कुछ पढे गणे नहीं थे इस लिये राजेन्द्रसूरिजी ही इस झगडा का मूल रोपा है और उनने ही बढाया है."
यह लिखना भी लेखकों की अज्ञता को जाहिर करता है क्यों कि न तो तुम्हारे लेख के समालोचक के गुरु ने इस का मूल रोपा न इन के शिष्यप्रतिशिष्यों ने और पक्षियों ने तीन चार स्तुति संबंधी झगडों को बढाया और न आज कल भी बढा रहे हैं, यह काम तुम्हारे ही वाड़े की भेडों का है, वे ही इसे अच्छी तरह पार पहुंचाते हैं और शांत जैनसमाज में द्वेष की आग भडकाते हैं, तथा समालोचक के गुरु तो अपढ नहीं थे, यह पदवी भी आप के ही टोले में सोभा पायगी, और उन के दादागुरु को अंध बताने वाले आप ही अंध जान पड़ते हैं, क्यों कि अंधपन का फल ही यह है कि सीधे रास्ते से गिर पडना, यह दशा तीन के मत वालों की बराबर हो रही है ।
फिर लेखक झूठी युक्ति चलाते हैं कि
" अपने गच्छ के साधु साध्वियों की प्रवर्तना समाचारी (कलमें) बांधी, तीस में लिखा है कि-पूजा-प्रतिष्ठा, दीक्षादि नांद विधि में चार
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