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________________ त्रिस्तुतिक मत-मीमांसा | १०१ अमरकोश के कर्ता ' किल ' शब्द के इस मुजब दो अर्थ लिखते हैं. " किल संभाव्य वार्तयोः " ( अमरकोश ) - संभावना और वार्ता इन दो अर्थों में किल शब्द का प्रयोग होता है । आचार्य हेमचंद्र अपने ' अनेकार्थ संग्रह ' में यों लिखते हैं" वार्ता - संभाव्ययोः किल, हेत्वरुच्योरलीके च " ( हॅम अनेकार्थसंग्रह ) -वार्ता, संभावना, हेतु, अरुचि और झूठ इन पांच अर्थों में 'किल ' शब्द का प्रयोग होता है । लेखकजी ! कहिये 'किल नाम निश्चय कर के, किल नाम निश्चय कर के ' यह आप का पोकार किस प्रामाणिक कोश अनुसार है ? | । के मान भी लिया कि आप का अभिमत अर्थ भी किसी ने लिख दिया तो भी क्या इस से यह कह सकते हैं कि 'अभयदेव सूरि ' ने 'किल ' - शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में किया है ? हर्गिज नहीं । वे चार स्तुतिप्रतिपादक चैत्यवंदनमहाभाष्य को पूरे तौर से प्रमाण समझते थे इस लिए चोथी थुई को नवीन ठहराने के लिये नहीं किंतु ऐसी मान्यता का खंडन करने के लिये उन्होंने खास ' किल ' शब्द का प्रयोग किया है, यह बात पहले ही कह चुका हूँ | अब लेखक जी अपने श्रावक ताराचंद्र की वकालत करते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003120
Book TitleTristutik Mat Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherLakshmichandra Amichandra Porwal Gudabalotara
Publication Year1917
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size7 MB
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