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गोपथ के उपर्युक्त दो अवतरणां में से पहले में अन्न को सर्व भूतों का आत्मा बताया, तब दूसरे प्रतीक में अन्न को ही यज्ञ का मूल बताया है ।
" त्रयाणां भक्ष्याणामेकमा हरिष्यन्ति सोमं वा दधि वापो वा स यदि सोमं ब्राह्मणानां स भक्ष्यः ब्राह्मणांस्तेन भक्ष्येण जिम्बिष्यसि"
"अथ यदि वृधि वैश्यान स भयो वैश्यान तेन भच्येण जिन्विष्यसि"
"
“यद्यपः शूद्राणां स भक्ष्यः शूद्रांस्तेन भयेगा जिन्विष्यसि " स० पं० ४ ० १४ ५० २ ऐतरेय ब्राह्मण के उपर्युक्त अवतरण में ब्राह्मण, वैश्य, शूद्र. का भक्ष्य क्रमशः सोम, दधि, और जल बताया है ।
क्षत्रिय के भक्ष्य का उल्लेख नहीं किया. यही नहीं परन्तु इसी ब्राह्मण में आगे जाकर यह लिखा है, कि क्षत्रिय राजा के हाथ का हव्य देवता ग्रहण नहीं करते, इससे ध्वनित होता है कि उस समय में क्षत्रियों में अन्न के अतिरिक्त दूसरे प्राणि जात खाद्य भी हो गये होंगे।
उपर्युक्त वेद तथा ब्राह्मण ग्रन्थों के अतिरिक्त शांख्यायान ब्राह्मण ( ११ ) शतपश ब्राह्मण ( २४/६/३/२२| ) कात्यायन श्रौतसूत्र ( २२।११।१ ) अथर्ववेद के कौशिक सूत्र आदि वैदिक ग्रन्थों में भी धान्य शब्द का प्रयोग देखने में आता है ।
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