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________________ (घृतोत्तरा पृथक चरवः सर्वे सर्वेषां वा पायसः ) इत्यनेन प्रत्येकं इन्द्र-यम-वरुण-वैश्रमण-अग्नि-वायु-विष्णु-रुद्र-मृादिभ्यः अरिष्टशान्त्यर्थ पञ्च पञ्चाहुतयः ददुः । - "षड्विंशब्राह्मण पृ० ३४-३८ उपर्युक्त अनेक उल्लेखों में अन्न, अन्नाद्य, अन्नाद, आदि शब्द प्रयोग में आये हैं । इतना ही नहीं. देवासुर संग्राम के प्रसङ्ग पर देवों ने प्रजापति से जो अरिष्ट शान्ति का विधान प्राप्त किया, उसमें सभी देवों के नाम के अन्नमय चा बनाकर पांच-पांच आहुतियाँ देने का विधान बताया है। गोपथ ब्राह्मण में-- "भूम्याऽन्नमभिपन्न प्रसितं पगमृष्टम , अन्नेन प्राणोऽभिपन्नो ग्रसितः परामृष्टः, प्राणेन मनोऽभिन्न प्रसितं परामष्टम् ," || ३७ ।। "प्राणोऽन्ने प्रतिष्ठितः, अन्नं भूभौ प्रतिष्ठितम ।। ३ ।। "विचारी ह वै काबन्धिः कवन्धस्यार्थवर्णस्य पुत्रो मेधावी मीमांसकोऽनूचान आस, सह स्वनेनातिमानेन मानुषं वित्त नेयाय, तं मातोवाचत एवैतदन्नमवोचस्त इममेषु कुरु पञ्चालेषु अङ्गमगधेषु काशि-कौशल्येषु शाल्वमत्स्येषु शवम उशीनरेषु उदीच्येष्वन्न मदन्ति । 'अदितिर्वै प्रजाकामौदनमपचन ततः उच्छिष्टमन्नात् सा गर्भ मधत्त, ततः आदित्या अजायन्त य एष ओदनः पच्यते प्रारम्भरणमेवैतन" पूर्व भाग २ प्रपा० पृ० २७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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