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लेना पड़ा । वे किसी भी अपराधी मनुष्य को धिक्कारते, तब वह अपने को दण्डित समझता था। . (अन्तिम कुलकर नाभि ने अपने पिछले जीवन में कुलकर का कार्यभार अपने पुत्र ऋषभ पर छोड़ दिया था । ऋषभ नाभि से विशेष ज्ञानी थे, अतः उन्होंने मनुष्य समाज की विशेष व्यवस्था के लिए ) घोड़े, हाथी, गाय आदि को पकड़वा कर राज्याङ्गों का संग्रह किया और इस प्रकार उपयोगी पशुओं को पकड़वा कर चतुर्विध राज्योपयोगी अङ्गों का संग्रह किया। इसी प्रकार मनुष्यों को भी चार वर्गी में वाँट कर उग्र, भोग, राजन्य, और क्षत्रिय इन नामों से सम्बोधित किया। उनों को उन्हों ने नगर रक्षकों का काम सोपा, भोगों को अपना गुरु स्थानीय और राज्यों को मित्र स्थानीय माना। शेष जो रहे वे क्षत्रिय नाम से प्रसिद्ध हुए। -
ऋषभ कुलकर ने अपने पुत्र भरत आदि को पुरुषों योग्य दास प्रति कलाओं का शिक्षण दिया, जिनका नाम निर्देश नीचे के अनुसार है। __"लेख (लिपि ) १, गणित २, रूप ३, नाट्य ४, गीत ५, वादन ६, स्वर गत ७, पुष्करगत 5, समताल ६, द्यूत १०, जनवाद ११, पोक्खञ्च १२, अष्टापद १३, दग मृत्तिका १४, अन्नविधि १५, पानविधि १६, वस्त्रविधि १७, शयनविधि १८, आर्या १६, प्रहेलिका २०, मागधिका २१, गाथा २२, श्लोक २३, गंधयुक्ति २४, मधुसिक्त २५, आभरण विधि २६, तरुणीप्रतिकर्न २७, स्त्री लक्षण २८, पुरुष लक्षण २६, अश्व लक्षण ३०, गज लक्षण ३१,
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