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________________ अासा हत्थी गावो, गहिआइ रज्जसंगह निमित्र । चित्त ण एवमाई, चउब्विहं संगहं कुणई ॥२०१॥ उग्गा भोगा रायगण, रवत्तिा संगहो भवे चउहा । प्रारकिख गुरु वयंसा, सेसा जे खत्तिया तेउ ॥२०२॥ अर्थात-हा-कार मा-कार, धिक्-कार, ये तीन प्रकार की कुलकर कालीन दण्डनीतियाँ थीं। जिन का अनुकम से विशेष विवरण करूंगा। प्रथम तथा द्वितीय कुलकरों के समय में प्रथमा हा कार नाम की दण्डनीति थी । तृतीय चतुर्थ कुलकरों के शासन-काल में मा-कार नाम की दण्डनीति चलती थी। तब पश्चम षष्ठ और सप्त कुलकरों के समय में धिक्कार नीति का प्रयोग होता था। तात्पर्य यह है कि, प्रथम द्वितीय कुलकर-कालीन मनुष्य बहुत ही सीधे और अल्प-कषायी होते थे, इस कारण उनकी कुछ भी भूल होने पर कुलकर उन को 'हा" इस प्रकार कहते और वे बड़ा भारी दण्ड समझकर फिर कोई अपराध न करते थे, परन्तु समय बीतने के साथ साथ मनुष्यों की भावनायें कुछ कठोर होती गई, परिणाम स्वरूप प्रथमदण्डनीति का असर कम होने लगा। तब तृतीय चतुर्त कुलकरों ने द्वितीय नीति का अवलम्बन लिया, और अपराधी मनुष्यों को "मा" । इस प्रकार स्पष्ट रूप से वर्जित कार्य करने का निषेध करना पड़ता था। परन्तु समयान्तर में वह नीति प्रभाव-हीन हो गयी। फलतः पञ्चम षष्ठ, सप्तम कुलकरों को "धिकार" नीति का आधार Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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