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________________ वृषभ लक्षण ३२, कुर्कुट लजण ३३, मेघ लक्षण ३४, चक्र लक्षण ३५, छत्रलक्षण ३६, दण्ड लक्षण ३७, असि लक्षण ३८ मणि. अक्षण ३६, काकणी लक्षण ४०, चर्म लक्षण ४१, चन्द्र लक्षण २ सूर्यचार ४३, राहुचार ४४, सहचार४५, सौभाग्यकर ४६, दौर्भाग्यकर ५७, विद्याकर ४८, मन्त्रगत ४६, रहस्यगत ५०, सभाष्य ५१, चार ५२, प्रतिचार ५३, व्यूह ५४, प्रतिव्यूह ५५, स्कंधावारमान ५६, नगरमान ५७, वस्तुमान, ५८, स्कंधाधार निवास ५६, वास्तुनिवेश ६०, नगरनिवेश ६१, अश्वरथ ६२, त्सरुप्रताप ६३, अश्व शिक्षा ६४, हस्ति शिक्षा ६५, धनुर्वेद ६६, हिरण्य सुर्वण मणि धातुपाक ६७, वाहुदण्ड-मुष्टि यष्टि युद्ध, युद्ध, नियुद्ध युद्धादि युद्ध ६८, सूत्र कीड़ा, धर्म क्रीड़ा, चर्मकीड़ा ६६, पत्रच्छेद्य, कडकछेद्य ७०, सजीव निर्जीव ७१, शकुन शब्द ७२। कल्प वृक्षों की अल्पता के समय में उन मनुष्यों के भोज्यपदार्थ जब तक उपर्युक्त दशविध वृक्ष प्रचुर परिमाण में होते हैं, तब तक अकर्म भूमिक मनुष्य आनन्द से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, परन्तु परिवर्तन काल वाले क्षेत्रों में ज्यों-ज्यों समय वोतता जाता है, त्यों-त्यों वैसे वृक्ष लुप्त होते जाते हैं। परिणाम स्वरूप मनुष्य अपने आवश्यक साधनों के लिए, इधर-उधर घूमते हैं और अन्य परिगृहीत वृक्षों पर आक्रमण करते हैं, और उनमें कलहकारो वृत्तियां बढ़ती जाती हैं । वे अपने वृक्षों पर आक्रमण करने वालों की शिकायत कुलकर के पास जाकर करते हैं; कुलकर अपनी नीति के अनुसार शिक्षा करता है। ऐसी परिस्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
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