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सामञ्ज फल मुत्त में लिखा है___"सेय्यथापि महाराज पक्खी सुकुड़ो येन येनेव डेति सपत्तभारोव डेति । एवमेव महाराज भिक्खू संतुठ्ठो होति, कायपरिहारकेन चीवरेन कुच्छिपरिहारिकेन पिण्डपातेन । सो येन येनेव पक्कमति समादायेव पक्कमति ।" ___ अर्थ- "हे महाराज ! जिस प्रकार कोई पक्षी जिस जिस दिशा में उड़ता है, उस उस दिशा में अपने पंखों के साथ ही उडता है, उसी प्रकार हे महाराज ! भिक्षु तो शरीर के लिये आवश्यक चीवर से और पेट के लिये आवश्यक अन्न ( भिक्षा) से सन्तुष्ट होता है । वह जिस जिस दिशा में जाता है, उस उस दिशा में अपना सामान साथ लेकर ही जाता है ।” ।
ऐसे भिक्षु के पास अधिक से अधिक निम्नलिखित गाथा में बताई हुई आठ वस्तुए रहती थीं।
तिचीवरं च पत्तो च बासि सूचि च बन्धनम् । परिस्सावनेन अठते युक्त योगस्स भिक्खूनो । अर्थ-"तीन चीवर, पात्र, वासि ( कुल्हाड़ी ) सुई, कमरबन्ध और पानी छानने का कपड़ा ये आट वस्तुएँ योगी भिन्तु के लिये पर्याप्त हैं।"
बौद्ध भिक्षु के प्राचार सम्बन्धी नियम
बुद्ध भगवान का यह उपदेश था कि भिक्षु इस प्रकार अत्यन्त सादगी से रहे, तथापि मनुष्य स्वभाव के अनुसार भिक्षु इन
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