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भोजन करने वाला होता है । यह रात्रि में नहीं चलने वाला होता है । विकाल भोजन से विरत होता है । नृत्य, गीत, वादिन और अश्लील खेलों से दूर रहता है। माला, सुगन्धि, चन्दनादि विलेपन धारण, मण्डन और विभूपण से निवृत्त होता है। उच्चासन पर बैठने तथा शय्या पर सोने से निवृत्त होता है। सोना, चांदी का ग्रहण करने से दूर रहता है। कच्चा धनियां ग्रहण करने से प्रतिविरत होता है। कच्चा मांस ग्रहण करने से निवृत्त होता है। हाथी की छोटी बच्ची को लेने से दूर रहता है। दासी दास के स्वीकार से दूर रहता हैं । बकरे मेंदे को ग्रहण करने से निवृत्त होता है । मुर्गा तथा सूअर को ग्रहण करने से दूर रहता है । हाथी, बैल, घोड़ा, घोड़ी के ग्रहण से प्रतिविरत होता है। क्षेत्र वास्तु के ग्रहण से प्रतिविरत होता है । दौत्यार्थ प्रेपणगमन से प्रतिविरत होता है । लेन देन के व्यापार से प्रतिविरत होता है । कूट तूला ( तराजू अथवा तोलने के बांट ) कूटकांश्य (द्रव पदार्थ भर कर देने का नाप) और कूटमान (गज आदि नापने का उपकरगा) को रखने से प्रतिविरत होता है। उत्कोटन आत्मोत्सर्ग, वञ्चना, निकृति-कपट, साचियोग से प्रतिविरत होता है। छेदन. वध, बन्धन, विपमरामर्श, आरोप, सहसाकार से प्रतिविरत होता है।
बौद्ध भिक्षु का परिग्रह बौद्ध भिक्षु आज कल किस ढंग से रहते हैं, उनके पास क्या क्या उपकरण रहते हैं यह तो ज्ञात नहीं है परन्तु भिक्षुओं के प्राचीन वर्णन से तो यही पाया जाता है कि वे बहुत ही अल्पपरिग्रही रहते होंगे।
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