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वस्तुओं को स्वीकार करने में भी नियम का उल्लंघन करते अर्थात् तीन चीवरों से अधिक वस्त्र लेते, मिट्टी या लोहे का पात्र रखने के बजाय ताम्बे या पीतल का पात्र लेते और चीवर बहुत बड़े बनाते | इससे परिग्रह के लिये अवसर मिल जाता । उसे रोकने के लिये बहुत से नियम बनाने पड़े। ऐसे नियमों की संख्या काफी बड़ी है ।
"विनय पिटक" में भिक्षु संघ के लिये कुल २२७ निषेधात्मक नियम दिये गये हैं । उन्हें पातिमोक्ख कहते हैं । उनमें से दो नियत (अनियमित ) और अन्तिम ७५ सेखिय यानी खाने पीने, रहन, सहन, बात चीत आदि में सभ्यता के नियम बताने वाले हैं । इन्हें छोड़कर बाकी एक सौ पचास नियमों को ही अशोक काल में "पाति मोक्ख" कहते थे ऐसा लगता है। उससे पहले ये सारे नियम बने नहीं थे, और जो बने भी थे उनमें से बुनियादी नियमों को छोड़कर अन्य नियमों में उचित हेर फेर करने का संघ को पूरा अधिकार था । परिनिर्वाण से पहले भगवान् ने आनन्द से कहा था, हे आनन्द ! यदि संघ की इच्छा हो तो वह मेरी मृत्यु के पश्चात् साधारण नियमों को छोड दे ।"
बुद्ध
इससे यह स्पष्ट होता है कि छोटे मोटे या मामूली नियमों को छोडने या देश काल के अनुसार साधारण नियम में हेर फेर करने के लिये भगवान् ने संघ को पूरी अनुमति दे दी थी ।
शरीरोपयोगी पदार्थों के प्रयोग में सावधानी
भिक्षुओं के लिये आवश्यक वस्तुओं में चीवर पिण्डपात (अन्न) शयनासन ( निवास स्थान ) और दवा चार मुख्य होती
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