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( ४४१ ) विन्ध्याचल के उत्तर में सारा भारत वर्ष जैन और ब्राह्मण संस्कृति का केन्द्र बना हुआ था।
चन्द्रगुप्त की सभा में वर्षों तक रहने वाले और उत्तर भारत में भ्रमण कर यहां का विवरण लेखक ग्रीक विद्वान् मेगास्थनीज के भारत विवरण से जाना जाता है कि ग्रीक विजेता सिकन्दर के भारत पर चढ आने के समय सिन्दु नदी के पश्चिम तट के प्रदेश में ब्राह्मण सन्यासियों का प्राबल्य था और इसी कारण से सिकन्दर ने उनके आगे वहां नेताओं को अपने साथ मिला कर भारत पर धावा करने का मार्ग सरल करना चाहा था, परन्तु उसमें वह सफल न हो सका। संन्यासियों की जमात से वहिष्कृत एक सन्यासी जिसका नाम मेगास्थनीज ने "कलेनस' लिखा है सिकन्दर का आज्ञाकारी बन चुका था, परन्तु सबसे बड़ा और सर्व सन्यासियों का नेता वृद्ध सन्यासी मण्डेनिस सिकन्दर की बातों में नहीं आया था। इस सम्बन्ध में मेगास्थनीज अपने भारत विवरण में निनोद्ध त पंक्तियां लिखता है।
"मेगास्थनीज कहता है कि आत्मघात करना दार्शनिकों का सिद्धान्त नहीं है, किन्तु जो ऐसा करते हैं, वे निरे मूर्ख समझे आते हैं । स्वभावतः कठोर हृदय वाले अपने शरीर में छुरा भोंकते हैं, अथवा ऊंचे स्थानों से गिर कर प्राण देते हैं, कष्ट की उपेक्षा करने वाले डूब मरते हैं, कष्ट सहने में सक्षम फांसी लगाते हैं
और उत्साह पूर्ण मनुष्य भाग में कूदते हैं । कल्लेनस भी इसी प्रकृति का मनुष्व था । वह अपने कुकृतियों के वश में तथा और
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