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वत्स आदि मध्य भारत के अनेक देशों में भ्रमण कर अपवे उप. देशों का प्रचार किया था। अपने धार्मिक सिद्धान्त बहुत जल्दी दूर दूर तक फैलें, यह उनकी तीव्र उत्कण्ठा थी और इसी उत्कण्ठा के वश होकर इन्होंने शिष्यों को पृथक् पृथक् स्थानों में प्रचारार्थ भेजा था, परन्तु भिक्षुओं की कठिनाइयों का विचार कर यह स्कीम उन्होंने बाद में बदल दी थी, और स्वयं भिक्षु संघ के साथ रह कर घूमते, और अपने सिद्धान्तों का प्रचार करते थे । बुद्ध के जीवन की अन्तिम घड़ी तक यह क्रम चलता रहा ।
ऐसा ज्ञात होता है कि बुद्ध परिनिर्वाण के पीछे बौद्ध भिक्षुओं की संख्या विशेष बढ़ने लगी थी । बुद्ध के बताये हुए उनके जीवन नियमों में भिक्षुओं ने पर्याप्त परिवर्तन कर लिया था, और मांस अक्षण की छूट तो उन्हें बुद्ध दे ही गये थे। इस सुख साधन सम्पन्न बौद्ध भिक्षु के जोवन में कहां जाना कहां नहीं इसका प्रश्न ही नहीं रहा था । आर्य प्रदेशों में जैन और ब्राह्मणों का बहुत्व तो था ही साथ साथ बौद्ध भिक्षुओं की संख्या वृद्धि के कारण वे भी सर्वत्र दृष्टि गोचर होते थे । बुद्ध ने उन्हें प्रत्यन्त देशों में जाने की भी आज्ञा दे ही दी थी। इस कारण विद्वान् बौद्ध भिक्षु भारत के समीप वर्ती देशों में भी घूमने लगे । वहां जो कुछ मिलता खा पी लेते, और बुद्ध के सुकुमार धार्मिक सिद्धान्तों का प्रचार किया करते थे।
भारत के बाहर के प्रदेशों में भी प्रचार
मौर्यकाल तक बौद्धधर्म भारत वर्ष में ही सीमित रहा, पर सम्राट अशोक ने इसे भारत के बाहर भी फैलाने का प्रयत्न किया।
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