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भारत के सभी देशों में राजा सम्प्रति के भेजे हुए विद्वान् जैन धर्म का प्रचार कर रहे थे । दक्षिण भारत के सुदूर वर्तो आन्ध्र द्रविड प्रदेशों में भी सम्प्रति के वेतन-भोगी उपदेशक जैन संस्कृति का प्रचार करने लग गये थे। इधर जैन धर्मियों के साथ जैन श्रमणों की संख्या भी खूब बढ़ी थी और वे भारत के कोने कोने में घूम कर जनता को जैन धर्म का उपासक बना रहे थे। इस परिस्थिति में भारत में बौद्ध भिक्षुओं के धर्म प्रचार में पर्याप्त मन्दता आगई थी। बौद्धधर्म को विदेशों में फैलने और भारत
से निर्वासित होने के कारण वैदिक तथा जैन धर्म के उपदेशक ब्राह्मण श्रमणों को आर्यभूमि से बाहर जाने की आज्ञा नहीं थी। वैदिक धर्म शास्त्रकारों ने जिस भूमिभाग में कृष्णमृग दृष्टिगोचर होता हो उसी भूमि भाग में ब्राह्मण - को जाने आने की आज्ञा दी थी। ज्यादा से ज्यादा पूर्व में काशी पश्चिम में कुरु देश, दक्षिण में विन्ध्याचल और उत्तर में हिमाचल की तलहटी तक ब्राह्मण को तीर्थ यात्रादि के निमित्त भ्रमण करने की आज्ञा दी गई थी।
जैन श्रमणों को पूर्व में अङ्ग-वङ्ग, पश्चिम में सिन्धु-सौवीर, दक्षिण में वत्स कौशाम्बी, और उत्तर में कुणाला श्रावस्ती तक के साढ़े पचीस देशों में विचरने की ही आज्ञा थी। गौतम बुद्ध भारत वर्ष के उत्तर प्रदेश में जन्मे थे, और उन्होंने मगध, काशी, कोशल
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