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अर्थः - हजार ब्रह्मचारियों से. सैकडों वानप्रस्थों से, और करोड़ों ब्राह्मणों से एक यति अधिक है. अर्थात् हजार ब्रह्मचारी सैकडों वानप्रस्थ. और करोडों ब्राह्मण एक यति की बराबरी नहीं कर सकते।
इस विषय में हारीत कहते हैं: -- सर्वेषामाश्रमाणां तु, संन्यासी घुत्तमाश्रमी । रस एवान नमस्यः स्याद् भक्त्या सन्मार्गदर्शिभिः ।। अर्थः -- सर्व आश्रमों में संन्यासी उत्तमाश्रमी है इसलिये सन्मार्ग में चलने वाले मनुष्यों को भक्तिपूर्वक वही नमस्कार करने योग्य है।
इस विषय में जाबाल का मन्तव्य :दुवृत्त वा सुवृत्त वा, यतो निन्दा न कारयेत् । यतीन् चे दूषमाणस्तु, नरकं याति दारुणम् ।। अर्थः-दुवृत्त वा सुवृत्त कैसा भी यति हो उस व्यक्ति को देखकर यति आश्रम की निन्दा न करना चाहिए । यति पर दोषारोपण करता हुआ मनुष्य नरक गति को पहुंचाता है ।
वृद्ध याज्ञवल्क्य कहते हैं:शुष्कमन्नं पृथक पाकं, यो यतिभ्यः प्रयच्छति । स मूढो नरकं याति, तेन पापेन कर्मणा ।।
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