SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 462
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ:--सूखा अन्न, तथा जुदा बना हुआ हल्का भोजन जो यतियों को देता है, वह मूढ से पाप से नरक में पड़ता है ! इस विषय में ऋतु कहते हैं:--- यतिर्योगी ब्रह्मचारी, शतायुः सत्यवाक सती। सत्री वदान्यः शूरश्च, स्मृताः शुद्धाश्च ते सदा ।। अर्थः-~-संन्यासी, योगी, ब्रह्मचारी, लौ वर्ष के आयु वाले, सत्य बोलने वाले, सती धर्म पालने वाली, अन्नदान देने वाले, दाता, शूर, इनको सदा काल शुद्ध माना गया है । अत्रि स्मृतिकार कहते हैं:यति हस्ते जलं दद्याद्, मैक्षं दद्यात्पुनजेलम् । तद् भैई मेरुणा तुल्यं, तज्जलं सागरोपम् ।। अर्थः--यति के हस्त में जल दे, फिर भैक्ष दे, तो भै मेरू तुल्य और पानी समुद्र तुल्य है। आपत्कालीन संन्यास सुमन्तु कहते हैं:आपत्काले तु संन्यासः, कत्तव्य इति शिष्यते। जरयाऽभिपरीनेन, शत्रभिर्व्यथितेन च ।। पातुराणां च संन्यासे, विधिव न च क्रिया। 4पमा समुच्चार्य, संन्यासं तत्र कारयेत् । A Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003119
Book TitleManav Bhojya Mimansa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1961
Total Pages558
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Food
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy