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( ३६२ )
मेधा तिथि कहते हैं
गते ।
द्विजाभावे तु सम्प्राप्ते, उपवासत्र भैक्षं शूद्रादपि ग्राह्यं, रक्षेत् प्राणान् द्विजोत्तमः ||
अर्थ:-ब्राह्मण कुल की प्राप्ति में भिक्षा बिना तीन उपवास हो जाने पर द्विज सन्यासी को अपवाद से शूद्र के घर से भी भिक्षा ग्रहण करने का अधिकार है ।
भैक्ष्यान्न
उशना के मत से संयासियों का भिक्षान्न पांच प्रकार का होता है | जो नीचे बताया जाता है
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माधुकरमसंक्लृप्तं, प्राक्प्रणीतमयाचितम् । तात्कालिक चोपपन्न, भैच्यं पञ्चविधं स्मृतम् ॥
अर्थ - माधुकर अर्थात् असंकल्पित तीन पांच सात घर से थोड़ा थोड़ा लेकर इकट्ठा किया हुआ भिक्षान्न माधुकर कहलाता है, असंक्लृप्त अर्थात् भिक्षा को देने के संकल्प से न बना हो वह अन्न, प्राक् प्रणीत अर्थात् भिक्षा के लिये जाने वाले के पूर्व तैयार किया हुआ अन्न, वगैर मांगे मिला अन्न, और तात्कालिक अर्थात् भिक्षु के जाने के बाद तैयार किया हुआ अन्न, ये भिक्षान्न के पांच प्रकार हैं । इनमें से सर्वोत्तम माधुकर और सर्व कनिष्ठ तात्कालिक भिक्षान्न को समझना चाहिए ।
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