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है और बढ़े हुए नवों केशों से यह वानप्ररथ है, ऐसा सममा जाता है।
संन्यासी संन्यासी शब्द से यहां वैदिक संन्यासी अभिप्रेत है।
संन्यास की प्राचीनता प्राचीन वेद संहिताओं में संन्यास अथवा संन्यासी परिव्राजक बादि शब्द दृष्टिगोचर नहीं होते। इससे आधुनिक विद्वान् यह मानने लग गये हैं कि प्राचीन काल में संन्यम्ताश्रम नहीं था, परन्तु यह मान्यता प्रामाणिक नहीं कही जा सकती, क्योंकि उपनिषदों में परिबाट शब्द मिलता है । बौधायन गृह्य सूत्र जो सबसे प्राचीन गृह्य सूत्र है उसमें संन्यासियों के प्रकार तथा आचार विधानों का सविस्तार वर्णन मिलता है।
प्राचीन से प्राचीन जैन सूत्रों में भी चरक, परिव्राजक आदि संन्यासियों के उल्लेख मिलते हैं । इससे यह तो निश्चित है कि यह आश्रम आज कल के विद्वान् जितना अर्वाचीन समझते हैं उतना अर्वाचीन नहीं, बल्कि वेद काल से ही चली आने वाली यह संस्था है। ___ यहां प्रश्न हो सकता है कि यह आश्रम इतना प्राचीन है तो ऋग्वेदादि में इसका नामोल्लेख क्यों नहीं मिलता ? .
इस का उत्तर यह है कि संन्यासी जङ्गलों पहाड़ों आदि में रहते थे, ग्रामों नगरों में बहुत कम आते थे। प्राथमिक संन्यास लेने
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