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( ३५८ ) हत्वा मूषकमार्जार-सजगरडुडुभान् । कृशरं भोजयेद् विप्रान्, लोहदण्डं च दक्षिणाम् ।।६।। शिशुमारं तथा गोधां, हत्वा कूर्मञ्च शल्लकम् । वृन्ताकफलभक्षी वा ऽप्यहोरात्रेण शुद्धयति ॥१०॥ वृकजम्बुकऋताणां, तरचूणां च घातकः । तिलप्रस्थं द्विजं दद्यात्, वायुभक्षो दिनत्रयम् ॥११॥
अर्थ-क्रोञ्च, सारस, हंस, चकवा, कुक्कुट, जालपाद पक्षी. शरभ, इनकी हत्या करने वाला रात-दिन का उपवास करने से शुद्ध होता है।
वलाका, टिट्टिभ, शुक कबूतर, आड, बगुला, इनकी हत्या करने वाला एक दिन के उपवास से शुद्ध होता हैं ।
उन्दर, बिल्ली, साँप, अजगर द्विमुख सर्प, इनकी हत्या कर दे तो ब्राह्मण को तिल माषों से बनी हुई खीचड़ी जिमाकर लोह दण्ड की दक्षिणा दे।
ग्राहमत्स्य, गोह, कछुआ, शल्लक, इनकी हत्या करने वाला और वृन्ताकभक्षी (बैंगन खाने वाला ) रात-दिन के उपवासस शुद्ध होता है।
भेड़िया, गीदड़, भालू , चीता, इनकी हिंसा करने वाला मनुष्य तीन रात-दिन के उपवास करके ब्राह्मण को एक प्रस्थ तिलों का दान देने से शुद्ध होता है ।
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