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( ३५६ ) ऊपर हमने दो एक धर्मशास्त्र और स्मृतियों के उद्धरण देकर यह दिखाया है कि ब्राह्मण किस प्रकार निरर्थक हत्याकार्यों के लिये दण्डविधान करके उन्हें अहिंसक रखने की कोशिश करते थे। आस्तिक लोगों के लिये तो प्रायश्चित्त करना ही पर्याप्त माना जाता था, परन्तु प्रायश्चित्त न करने वालों को हिंसा से दूर रखने के लिये ब्राह्मणों ने हिंसा कार्यों के लिये आर्थिक दण्ड तक नियत करवा दिया था। जिसके अनुसार निष्कारण प्राणिहिमा करने वालों को आर्थिक दण्ड देकर ठिकाने लाते थे। आजकल जिन प्राणियों की हिंसा करने वालों को सरकार पारितोषिक देती है, उन्हीं प्राणियों की हिंसा करने वालों को उस समय के राजा लोग आर्थिक शिक्षा देते थे, इतना ही नहीं बल्कि कई देशों में हिंसा करने वालों के हिंसक अङ्ग उपाङ्ग तक कटवा दिये जाते थे। इम प्रकार कड़ी शिक्षाओं और कठोर प्रायश्चित्तों के कारण से ही भारत का अधिकांश जन समाज अहिंसक रहा है, और भारत वर्ष आर्यक्षेत्र कहलाने का दावा कर सकता है। ___ समय विशेष में यज्ञों में हिंसा के घुसने और उसके बाद के ग्रंथ निर्माता ब्राह्मणों द्वारा उसे धम्यमान लेने के परिणाम से पिछले ब्राह्मणों को श्रमुक समय तक यज्ञ में एक आध प्रोक्षित पशु का वध करने और उसका बलि-शेष मांस खाने को बाध्य होना पड़ा । इस समय-विशेष की प्रवृत्ति मात्र से ब्राह्मण जाति मात्र को पशुघातक और गोमांस भक्षी कहना नितान्त अनुचित है। ब्राह्मण यज्ञ में नियुक्त होकर किस भावना से मांस खाता था, इस
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