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( ३५५ ) अर्थः-गोहत्या करने वाला उसके पाले चमड़े से शरीर को विट कर कृच्छ अथवा तप्तकृच्छ प्रायश्चित्त करके छः मास तक रहने से शुद्ध होता है। ___श्वमार्जारनकुलसर्पदुर्दुर-मूषिकान् हत्वा कृच्छ द्वादशरात्र चरेत् किञ्चिद् दद्यात् ॥२४॥ ____ अर्थः-कुत्ता, बिल्ली, नौवला, सांप, मेंढक, चूहा इनको मारने वाला बारह रात-दिन तप्तकृच्छ्र करे और कुछ दान भी दे।
अनस्थिमतां तु सत्वानां गोमात्रं राशि हत्वा कृच्छ द्वादश रात्रं चरेत् किञ्चिद् दद्यात् ॥२४॥
अर्थः-अस्थिविहीन कीट पतङ्गों को मार कर गोप्रमाण ( खड़ी रही गोप्रमाण ऊ चा ) ढेर करने वाला द्वादश रात्रि तक कृच्छ करने पर कुछ दान देने से शुद्ध होता है ।
अस्थिमतां त्वेककम् ॥ २६ ॥ अर्थः-हड्डी वाले एक एक प्राणी को मारने वाले की द्वादश रात्र कृच्छ करने से और कुछ दान से शुद्धि होती है।
गौतमधर्मसूत्रोक्तप्रायश्चित्तानि क्रव्यादांश्च मृगान् हत्वा, धेनु दद्यात्पयस्विनीम् । अक्रव्यादान् वत्सतरी मुष्ट्र हत्वा तु कृष्णगाम् ।।१||
अर्थः-मांसभक्षक मृगों को मार दे तो दूध देने वाली गौ का दान देने से शुद्ध होता है, तृणभक्षक मृगों को मार दे तो बछड़ी
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