________________
( ३५४ ) जिस राजा के इस प्रकार का विद्वान और राष्ट्र को बचाने वाला पुरोहित होता है, उस राजा की प्रजाजन प्रतिष्ठा करते हैं, और जिसके यहां राष्ट्र को बचाने वाला विद्वान् पुरोहित होता है उसके प्रजाजन एक मन के होकर राजा की आज्ञा उठाते हैं।
"जिसके पुरोहित नहीं है उस राजा का अन्न देव नहीं खाते हैं । इस कथन का अर्थ उल्टा भी किया जा सकता है कि यह बात ब्राह्मणों ने अपने म्वार्थ के लिये कही है परन्तु वस्तुस्थिति ऐसी नहीं है, ब्राह्मणों को राजा की निश्रा में रह कर उसे धार्मिक बनाये रखना है और पशुपक्षियों की हिसा से तथा अभक्ष्य भक्षण से बचाना है। यदि राजा पुरोहित को अपना हितचिन्तक और पारलौकिक मार्गदर्शक न मानते तो उनकी प्रवृत्तियां निरंकुश और खान-पान अमर्यादित हो जाते और परिणाम यह होता कि क्षत्रिय जाति से धर्म का नाम विदा ले लेता, परन्तु विद्वान् बामणों ने ऐसा होने नहीं दिया, वे निरर्थक हिंसा के बुरे परिणाम को उन्हें सुनाया करते थे, और प्रायश्चित्त देकर पाप-प्रवृत्तियों से निवृत्ति कराते रहते थे। ___ यहां हम निरर्थक हिंसा करने वालों को तथा अभक्ष्य भक्षण
और अपेयपान करने वालों को दिये जाने वाले प्रायश्चित्तों का संक्षिप्त दिग्दर्शन कराके इस विषय को पूरा करेंगे।
वसिष्ठ धर्मशास्त्रोक्त हिंसाप्रायश्चित्तानि
गाश्च दहन्यात तस्याश्चर्मणाद्रेण परिवेष्टितः षण्मासान् कृच्छ्र तप्तकृच्छ वा तिष्ठेत् ॥१८॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org