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समझदार वृद्ध श्रमण को बैठाकर श्रमणी को प्रायश्चित्त देते हैं । यह राहसिकी परिषद् 'अष्टक, कहलाती है ।
श्रमणों की दिन चर्या
जैन श्रमणों की दिनचर्या के विषय में जैन सूत्रों में बहुत लिखा हुआ है, परन्तु उन सभी का वर्णन करने का यह स्थल नहीं. यहां पर हम उन्हीं बातों का संक्षेप में सूचन करेंगे, जो आज तक मौलिक हैं ।
१ - जैन श्रमण को पिछले पहर रात रहते निद्रा त्याग कर उठ जाने का आदेश है ।
२- रात्रि के चौथे प्रहर में उठ कर वह प्रथम स्वाध्याय ध्यान करता है, और रात्रि के अन्तिम मुहूर्त्त में प्रतिक्रमण करके प्रतिलेखना करता है ।
३ - प्रतिलेखना के अनन्तर सूर्योदय के बाद अपने स्थान को प्रमार्जित कर फिर दिवस के प्रथम प्रहर में वह यदि विद्यार्थी
१ - प्राजकल भिक्षा-चर्या का टाइम मध्यान्ह का नहीं रहा । देशा नुसार जिस देश में लोगों के भोजन करने का समय होता है लगभग उसी समय में उस देश में विचरने वाले भिक्षा चर्या को चले जाते हैं । पूर्वकाल में प्रत्येक श्रमण नियमतः एक समय ही भोजन करते थे, परन्तु प्राजकल एक भुक्ति का भी नियम नहीं रहा । इसलिये भिक्षाचर्या के जाने के समय में भी परिवर्तन हो गया है । श्राजकल अधिकांश श्रमण दो बार भोजन करते हैं ।
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