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हो तो सूत्र का अध्ययन करता है, और अन्य साधु अपने अभ्यस्त शास्त्रों का पारायण करते हैं।
४-दिवस के द्वितीय प्रहर में श्रमण पढ़े हुए सूत्र का आचार्य के पास अर्थ सीखता है।
५-दो प्रहर हो जाने पर वह भिक्षा चर्या में जाने की तैयारी करता है, और गुरु की आज्ञा लेकर बस्ती में से जरूरी आहार पानी लेकर अपने उपाश्रय में आता है।
६-आचार्य के सामने ईर्ष्या पथ प्रतिक्रमण कर भिक्षान्न गुरु को बताता है, और उस में से कुछ लेने के लिये गुरु को तथा अन्य श्रमणों को प्रार्थना करता है।
७-भोजन करने के बाद भोजन पात्रों को साफ कर योग्य स्थान पर रख के फिर देह चिन्ता-निवृत्त्यर्थ स्थण्डिल भूमि को जाता है, अगर उसे विहार कर ग्रामान्तर चला जाना होता है, तो भी दिवस के तीसरे प्रहर में ही विहार करेगा। फिर वह शास्त्राध्ययन करता है।
-दिवस के चतुर्थ प्रहर में वह प्रतिलेखना कर के स्वाध्याय करता है।
१-तीसरे पहर विहार करने का नियम भी आजकल शिथिल हो गया है। श्रमणों का अधिक भाग आज कल दिनके पहले प्रहर में ही विहार किया करता है।
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