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से उबटना ) गृहस्थ वैयावृत्य ( गृहस्थ के कार्यों में मदद करना ) आजीववृत्तिता ( जाति कुल शिल्पादि द्वारा आजीविका ) तप्ता निवृत्त भोजित्व (तपे हुए अर्द्धनिप्पन्न आहार पानी का भोजन ) आतुर शरण ( थके मांदे गृहस्थों को आश्रय देना ) प्रामुक मूली अदरक गन्ने का टुकड़ा और सचित्त कन्द मूल और फल तथा बीज सौवर्चल, सैन्धव लवण, कच्चा रोम लवण, तथा समुद्र चार, पांसु चार और कचा काला नमक, ये सब श्रमण को अग्राह्य हैं ।
धूपन (वस्त्र आदि को सुगन्धि धोये से धुपाना ) चमन (दवा के प्रयोग से उल्टी करना ) वस्ती कर्म ( नालिकादि द्वारा वस्ती भाग में तैलादि स्नेह चहाना ) विरेचन ( रेचक द्रव्य द्वारा दस्त लगाना ) अञ्जन ( नेत्रों में काजल लगाना ) दन्तवन ( दातुन करना ) यात्राभ्यंग (तैलादि से शरीर के मालिश करना ) विभूपण (शोभा निमित्त किसी भी प्रकार के शारीरिक संस्कार) संयम से संयुक्त और निष्परिग्रह होकर विचरने वाले निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिये ये सभी बातें अनाची ( अनुपादेय ) हैं ।
पंचासव परिणाया, तिगुत्ता छ सुसंजया | पंच निगहरणा धीरा, निग्गंथा उज्जुदंसिणो ॥ ११ ॥ यायावति गिम्हेसु, हेमन्ते अवाउडा |
सासु परि संलीणा, संश्रया सुसमाहिया ||१२|| परीसह रिउदंता,
मोहा जिदिया ।
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