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( २३६ ) धूवणेत्ति वमणेय, वत्थी कम्म बिरेयणे । अंजणे दंतवण्णेय, गाया भंग विभृपणे ॥६॥ सव्वमेयमणाइन्न, निग्गंथाण महमिणं । संजमम्मि य जुत्ताणं, लहुभूय विहारिणं ॥१०॥
अर्थ-औद्देशिक ( साधु के निमित्त बनाया हुआ ) क्रीतकृत ( उनके निमित्त खरीदा हुआ ) नियाग ( आमन्त्रित ) पिण्ड अभिहत ( सामने लाया हुआ) और रात्रि भक्त ( रात्रि भोजन ) इत्यादि प्रकार के आहार निग्रन्थ श्रमणों को अग्राह्य हैं । तथा स्नान गन्ध पुष्पमाला वायु वीजन ( पंग्ब ) सन्निधि ( पास में बासी रखना ) गृहस्थामत्र ( गृहस्थ के बर्तन में भोजन ) राजपिण्ड ( अभिषिक्त राजा के घर का आहार ) किमिच्छक ( क्या चाहते हो यह कह कर दिया जाने वाला) संवाहन (शरीर मर्दन) दन्त प्रधावन, सांसारिक कार्य सम्बन्धी प्रश्न देह अलोकना ( काच
आदि में मुख शरीर आदि का देखना ) अष्टापद (जुआ) खेलना नालिका ( चूत क्रीडा विशेष ) छत्रधारण (निरर्थक शिर पर छत्र धारण करना ) चिकित्सा ( रोग की दवा करना ) उपानह ( पैरों में जूता पहनना ) ज्योतिः समारम्भ ( अग्नि जलाना ) शैय्यातर पिण्ड ( उपाश्रय के मालिक के घर का आहार ) आसनन्दीय ( सूत की रस्सी से अथवा बेंत की छाल से बनी हुई कुर्सी पर बैठना ) पर्यङ्क (पलंग पर बैठना सोना ) गृहान्तर निषद्या ( दो घरों के बीच अथवा बस्ती वाले गृहस्थ के घर में आसन लगाना) कायोद्वर्तन ( शरीर पर से मैल हटाना अथवा सुगन्धित पदार्थ
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