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के सामान्य आचार का दिग्दर्शन कराना प्रासङ्गिक होगा। वे गाथायें क्रमशः नीचे दी जाती हैं।
संजमे सुठियप्पाणं, विप्पमुक्काण ताइणं । तेसिमेय मणाइन्न, निग्गन्थाणं महेसिणं ॥१॥ अर्थ-जो संयम-मार्ग में सुस्थित है, संसार के प्रलोभनों से मुक्त है, सभी त्रस-स्थावर प्राणियों के रक्षक हैं, उन निर्ग्रन्थ महघियों के लिये नीचे के कार्य अनाचीर्ण ( अकर्त्तव्य ) है ।
उद्धसियं कीयगडं, नियागमभिहडाणिय । राइभत्ते सिणाणेय, गंध मल्लेय वीयणे ॥२॥ संनिहिं गिहि मचेय, रायपिंडे किमिच्छए । संवाहणं दंत पहोयणाय, संपुच्छणे देहपलोयणाय ॥३॥ अट्ठावएयनालीए, छत्तस्सय धारणाहाए । ते गिच्छं पाहणाप्पाए, समारम्भं च जोइणो ॥४॥ लिज्जायर पिंडं च, आसं दीपलियं कये । गिहिंतर निसिज्जा य, गायस्सु वट्टणाणिय ।।५।। गिहिणो वेत्रावडियं, जाय आजीव वत्तिया । तत्ता निव्वुड भोडगं, आउरस्सरणाणिय ॥६॥ मूलए सिंगवेरेय, इच्छुखंडे अनिव्वुडे । कंदे मूले य सचिने, फले बीए य आमए ॥७॥ सोवचले सिंधवे लोणे, रोमालोणेय आमए । सामुद्दे पंमु खारेय, काला लोणेय आमए ।।८।।
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