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स्वल्पाकारा लोहिताङ्गा, श्वेतकापोतिकोच्यते । द्विपर्णिनी मूलभवां, मरूणां कृष्णपिङ्गलाम् ।।५११॥ द्विरत्निमात्रां जानीयाद्, गोनसीं गोनसाकृतिम् । सक्षारां रोमशां मृद्वीं, रसनेचरसोपमाम् ॥५१२॥ एवं रूपरसां चापि, कृष्णकापोतिमादिशेत् । कृष्ण-सर्पस्य रूपेण, वाराही कन्दसम्भवाम् ।।५६३॥ एकपर्णा महावीर्यो, भिन्नाञ्जन-चयोपमाम् । छत्रातिच्छत्रके विद्याद्, रक्षोध्ने कन्द-सम्भवे ॥५६४॥ जरामृत्यु-निवारिण्यौ, श्वेतकापोतिसम्भवे । कान्तैदशभिः पत्र-मयूराङ्गरुहोपमैः ॥५६॥
( कल्पद्र मकोशः) अर्थ-जो स्वल्प आकार वाली और लाल अंग वाली, होती हैं वह श्वेत कापोतिका कहलाती है, श्वेत कापोतिका दो पत्तों वाली और कन्द के मूल में उत्पन्न होने वाली, ईषद् रक्त तथा कृष्ण पिङ्गला, हाथ भर ऊंची गौ की नाकसी और फणधारी सांप की आकृति वाली, क्षारयुक्त, रोंगटों वाली, स्पर्श में कोमल, जिह्वा से चखने पर ईख जैसी मीठी होती है।
इसी प्रकार के स्वरूप और रस वाली को कृष्ण कापोतिका कहना चाहिए । कृष्ण कापोतिका काले सांप के रूपमें वाराही कन्द के मूल में उत्पन्न होती है, वह एक पत्ते वाली महावीर्य दायिनी, और अति कृष्ण अञ्जन समूह सी काली होती है, पत्र मध्य से
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