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( १४४ ) सुवर्ण माक्षिक धातु, पुराने धान्य, जो उगने के काल से अतिक्रान्त हुए हैं।
(शालिग्रामोषध शब्दसागर ) कपोत शब्द से आज कल कबूतर का बोध होता है, परन्तु पूर्वकाल में कपोत पक्षी मात्र का वाचक था, और सौ वीर नामक श्वेत सुर्मा भी कपोत कहलाता था। क्योंकि सुरमे का वर्ण कपोत से मिलता जुलता होने से वह कपोत नाम से प्रसिद्ध हुआ था । इसी प्रकार सज्जी, कापोत कहलाता था क्योंकि इसका भी वर्ण कपोत का सा होता है।
गोपी, गोपवधू गोपकन्या शब्दों से क्रमशः गोप स्त्री, गोप की बहू गोप की पुत्री, का अर्थ उपस्थित होता है, परन्तु इनका वास्तविक अर्थ वैद्यक ग्रंथों में निम्नलिखित बताया है । जैसे
कृष्णा तु सारिवा श्यामा गोपी गोपवधूश्च सा । धवला सारिवा गोपी, गोपकन्या च सारवी ।।
( भावप्रकाश निघण्टुः ) अर्थात्-श्यामा, गोपी, गोपवधू ये कृष्ण सारिवा के नाम हैं । और गोपी, तथा गोप कन्या, ये दो नाम धवला सारिवा के हैं।
श्वेत कापोतिका और कृष्ण कापोतिका शब्दों से पाठक श्वेत तथा कृष्ण मादा कपोत पक्षी का ही बोध करेंगे, परन्तु वास्तव में ये शब्द किस अर्थ के बोधक हैं, यह तो नीचे के उद्धरण से ही समझ सकेंगे।
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