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( १३२ )
मनुष्य के आहार से तैयार हुआ सत्य रसभाग कहलाता है, वैसे वनस्पतियों में रहा हुआ जल भाग रस कहलाता था
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प्राणधारियों के रस से निष्पन्न तत्त्व रुधिर कहलाता है, वैसे बनस्पतियों के तैयार होने वाला स्राव उनका रुधिर कहलाता था २ ।
प्राणधारियों के रुधिर से बनने वाला ठोस पदार्थ मांस कहलाता है, वैसे वनस्पतियों में मिलने वाला सार भाग ( गूदा ) मांस कहलाता था ।
प्राणधारियों के मांस से मेदस् धातु बनता है, वैसे वृक्षों के है वह मांस है, इनका जो कंसार ( ऊपर का कठोर भाग ) है वह अस्थि है, (जो इस पुरोडाश से यज्ञ करता है, वह सर्व पशुओं से यज्ञ करता है, इस वास्ते पुरोडाश को लोक- हितकारी सत्र कहते हैं ।
१. तस्मात्तदा तृणात्प्रेति रशो वृक्षादि वाहतात् ॥
"वृहदारण्यकोपनिषद्'
अर्थ - जिस प्रकार वृक्ष पर प्रहार करने से रस निकलता है, वैसे ही वृक्ष पुरुष के प्ररोह से रस निकलता है ।
२. त्वच एवास्य रुधिरं प्रस्यन्दि त्वच उत्पदः ।।
|| वृहदारण्यकोप० ॥
ग्रर्थ--इस का रुधिर स्राव है, जो त्वचा के भीतर से भरता है ।
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