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( १३१ ) प्राणधारियों के शरीर पर के रोम रोंगटे और शिर पर के रोम बाल कहलाते हैं, वैसे ही वनस्पतियों के शरीर पर भी रोम तथा बाल माने जाते थे।
__अर्थात्-शमी, पलाश, खदिर, विल्व, अश्वत्थ, विककृत, न्यप्रोध,पनस, आम्र, शिरीष, उदुम्बर इन वृक्षों तथा अन्य सर्व याज्ञिक वृक्षों के चर्म (छल्ली) के चूर्ण से मिले जल भरे कलश से (विष्णुमूर्ति का) अभिषेक करे ।
कूष्माण्डबीजैनिस्त्वग्भि-श्चिभटादिप्रियालजैः । खण्डपाके विमित्रैश्च कुर्यात्तेषां हि मोदकान् ।।
"क्षेमकुतूहल' अर्थ-कूष्माण्ड, चिर्भट, ककड़ी और पियाल, इनके बीजों को त्वचाहीन करके मज्जा निकाल कर घृत में भूनले और फिर खांड की चासनी में मिश्रित करके लाडू बनाले ।
१-'स वा एप पशुरेवालभ्यते, यत् पुरोडाशस्तस्य किंगारूकारुग्गितानि रोमाणि ये तुषाः सा त्वक् ये फलीकरणास्तदसक् यत् पृष्ठं कीकनसाः, तन्मासं, यत्किञ्चित् कंसारं तदस्थि सर्वेषां वा एष पशूनां मेधेन यजते, तस्मादाहुः पुरोडाशसत्रं लोक्यमिति' । द्वितीयपञ्जिकर अ० पृ० ११५ __अर्थ-यह पशु का ही पालम्भन किया जाता है, जो पुरोडाश तैयार करते हैं, यव ब्रीहि पर जो किंशरू (शूक) होते हैं वे इनके रोम हैं, इन पर के तुष इनका चर्म है, जो फलीकरण है वह इनका रुधिर है, जो पृष्ठ हे वह इनका रीढ़ है, इनका जो कुछ सारभाग
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