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( १३० ) होते हैं । वासिष्ठ नाम वसिष्ठ से बना मालूम होता है। इसका व्युत्पत्त्यर्थ वसा भेदः प्रयोजनमस्येति वासः, ततोऽतिशयार्थ इष्टः । वासिष्ठः यों ज्ञात होता है । वैजयन्ती में वासिष्ठ शब्द रक्त का पर्याय बताया गया है । घस यह नाम भक्षणार्थक घस्लृ धातु से बना है। मांस के उक्त अठारह नामों में केवल घस नाम ही भक्षणार्थक धातु से बना हुआ है और यह नाम सबसे अर्वाचीन प्रतीत होता है।
उक्त मांस के नामों और उनके अर्थों से स्पष्ट होता है कि मांस मनुष्य के खाने का पदार्थ नहीं था । परन्तु दुर्भिक्षादि के समय में जंगली लोगों ने इसको अपना खाना बनाया और धीरे धीरे यह खाना बहुतेरे अनार्य देशों में फैल गया । इस खाने ने पृथिवी पर कितने अनाचार, कितनी अनीति और कितने रोग फैलाये इसका निर्देश प्रथम अध्याय के अन्त में कर पाये हैं।
वनस्पत्यंग मांस जिस प्रकार मनुष्य आदि प्राणधारियों के शरीर में रस, रुधिर, मांस, मेदस् , अस्थि, मज्जा, वीर्य, यह सातधातुमाने जाते हैं, उसी प्रकार अति प्राचीनकाल में वनस्पतियों के भी रसादि सात धातु माने जाते थे । मनुष्य आदि प्राणधारियों का शरीरावरण चर्म अथवा त्वचा कहलाता है, उसी प्रकार वनस्पतियों के शरीर का आवरण भी चमे अथवा त्वक कहलाता था।
१-"शमीपलाशखदिरविल्वाश्वत्थविकतन्यग्रोधपनसाम्रशिरीषोदुम्बराणां सर्वयाज्ञिकवृक्षारणां चर्मकषायकलशेनाभषिञ्चति'
(बौधायनगृह्यसूत्र पृ० २५५ )
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