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अङ्ग प्रत्यङ्गों में से मेदस् सदृश स्राव निकलता है, उसे वनस्पति का मेदो धातु माना जाता था ।
प्राणधारियों के शरीर में रहने वाले कठोर दारु-भाग को अस्थि कहते थे, तथा वनस्पति के फलों में रही हुई गुठलियाँ तथा बीजों को भी अस्थिक के नाम से पहिचाना जाता था । प्रारणधारियों के अस्थियों में होने वाले स्निग्ध पदार्थ को मज्जा धातु कहते हैं, वैसे फलों की गुठलियों में तथा बीजों में से निकलने वाले स्निग्ध पदार्थ को वृक्ष की मज्जा कहते हैं । प्राणधारियों के
१. कण्टाफलमपक्कं तु कषायं स्वादशीतलम् ।
कफपित्तहरं चैव, तत्फलास्थ्यपि तद्गुणम् || १७३ || रा० ब० नि० अर्थ - कच्चा कटहल, कषाय रस वाला, स्वादिष्ट, और शीत वीर्यं होता है, कफ, पित्त, का नाशक है, इसके फल का अस्थि ( गुठली ) भी फल के जैसा गुणवान होता है ।
“अस्थि बीजानां शकुदालेपः शाखिनां गर्त्तदाहो गोऽस्थि शद्भिः काले दोहदं च ।" अर्थ शा० पृ० ११७ । अर्थ - प्रस्थि और बोज वाले वृक्षों के बीजों को गोबर का लेप करके बोना चाहिए ।
२. वाताद मज्जा मधुरा वृष्यातिक्ताऽनिलापहा ।
स्निग्धोष्णा कफन्न ष्टा, रक्तपित्त-विकारिणाम् ॥ १२५ ॥ भाव प्रकाश निघण्टु |
अर्थ - बादाम की मज्जा ( गिरी ) मीठी, पुष्टिकारक, पित्त वात का नाश करने वाली, स्निग्ध, उष्णवीर्य, और कफ करने वाली होती है, इसका सेवन रक्त पित्त के रोगियों को हितकारी नहीं है ।
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