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________________ [ ४९ ] श्वरना (परिकरमां) उपरना छत्रोटामां बतावेल छे ते अम्हारा जेवा आधुनिक मनुष्योना मनमां जन्मसमयमा थयेल मञ्जन-स्नान महिमाना समारंभना महिमाने ठसावे छे. (१) वस्त्र, आभूषण, विलेपन अने पुष्पमालाओथी विभूषित जिनेश्वरने विषे राज्यलक्ष्मीने भोगवनार तरीकेनी भव्य मनुष्योवडे भावना कराय छे. (२) केश वगरनुं मस्तक अने मुख दृष्टिगत थतां ज भगवन्तनी श्रमणावस्थाने जणावे छे (३) आ छद्मस्थावस्था अथवा पिंडस्थावस्थानो अर्थ छे अर्थात् छद्मस्थावस्थाना व्रण तत्रका छे : १ बाल्यावस्था, २ राज्यावस्था अने ३ श्रमणावस्था. " किंकिल्लि कुसुमबुड्डी, दिव्वज्झणि चमरधारिणो उभओ । सिंहासणभामंडल - दुंदुहिछत्तत्रयं चैव ॥ इय पाडिहेर रिद्धी, अणन्नसाहारणा पुरा आसि । केवलियनाणलंभे, तित्थयरपयंमि पत्तस्स ॥ " अर्थ - अशोकवृक्ष, पुष्पवृष्टि, दिव्यध्वनि, बंने तरफ चमरधाराओ, सिंहासन, भामंडल, देवदुंदुभि, छत्रत्रय आ अनन्य साधारण प्रातिहार्य ऋद्धि पूर्वे हती ज्यारे के भगवान् केवलज्ञान पामी तीर्थंकर पदने पाम्या हता, आ पदस्थ भावना. "पलिअं कसंनिसन्नो, उडाणडिओ य किर भयवं । एए दो आयारा अरू भावे जिणवराणं ||" अर्थ- पर्यंकासने बेठेल अथवा ऊर्ध्वस्थानस्थित कायोत्सर्गमुद्रा आ बे आकारो भगवंतनी सिद्धावस्थाना छे. आ आकारोथी भगवंतनी अरूपत्व अवस्थानी भावना करवी. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003118
Book TitleJina Pooja Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1957
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
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