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स्नपन करावq अने वर्ष संपूर्ण थया पछी अट्टाहि उत्सव करीने छेल्ली विशेष पूजा करवी. आथी शुं ए नथी स्पष्ट थतुं के मासिक बार स्नानो सिवायना दिवसो स्नान विनाना हता. जो नित्य स्नान ते वखते होत तो मासिक स्नानो लखवानी आवश्यकता न रहेत. एज रीते श्री हरिभद्रसूरिजीना समयमां जो प्रतिदिन पूजा चालु होत तो तेमने आठ दिवस पर्यंत अविच्छिन्नपणे पूजा चालु राखवानो उपदेश आपवो न पडत.
श्री चन्द्रसूरिजी पोतानी प्रतिष्ठापद्धतिमां लखे छे"प्रतिष्ठावृत्तौ द्वादश मासिकस्नानानि कृत्वा पूर्णे वत्सरे अष्टाहिकां विशेषपूजां च विधाय आयुग्रन्थि निबन्धयेत् ।"
___ अर्थात्-'प्रतिष्ठा वीत्या पछी १२ मासिक स्नानोत्सत्र करावीने वर्ष पूरं थया बाद अट्टाहि उत्सव अने विशेष पूजा करीने आयुष्यनी गांठ बांधवी.'
आ उल्लेखथी पण बारमी शताब्दीमां पण नित्यस्नान नियत नहोतुं थयु, एथी ज आचार्यने मासिक स्नान लखवू पडयु, अन्यथा नित्यमा मासिक स्नान आवी ज जतुं हतुं लखवानी जरूरत पडत नहि. ए ज प्रमाणे चौदमी शताब्दी सुधीमां बनेला दरेक प्रतिष्ठाकल्पोमां मासिक स्नानोनी भलामण छ पण ए पछीना कल्पोमां रुख बदली जाय छे, केमके पंदरमा सैकामां नित्यस्नान सार्वत्रिक नियमित
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