SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ३४ ] उचित छ, तेम सुवर्णादि निर्मित प्रतिमाओनी स्नानादि पूजा उचिततम छे. आ नित्य स्नानना प्रचारकालने अन्ते संदर्भित थयेल संबोध प्रकरणमां तो तेना संदर्भकार आचार्ये "पंचोपचारी पूजा"ना उपचारोमां पण विकृति करी दीधी छे "वरकुसुमावलि-अक्खय-चंदणदव-धूव-पवरदीवहिं । पंचावयारपूआ, कायव्या वीयरागाणं ।।" अर्थात्-सुगंधी पुष्पावली १, अक्षत २, चंदनद्रव (धोल)३, धूप ४, दीपक ५, आ पांच द्रव्योथी वीतरागनी पंचोपचारी पूजा करवी. प्रचारनो केवो प्रभाव ? श्री हरिभद्रसूरिजी, चंद्रप्रभमहचरजी, शांतिसूरिजी जेवा प्रामाणिक सुविहित आचार्योए पंचोपचारीमा तेमज अष्टोपचारी पूजामां गंधपूजाने मुख्य गणी छे. श्री नेमिचंद्रसूरिजीए अनन्तनाथचरित्रान्तर्गत 'पूजाष्टक'मां 'वास' पूजा तरीके जे गंधपूजार्नु वर्णन कर्यु छे तेज 'गंध'ने उडाडीने आ कूटग्रंथ संबोध प्रकरणना संग्राहके मूलमा जे 'गंध' पूजा हती तेना स्थाने 'चंदनद्रव' पूजा लखी दीधी. आम नित्यस्नानना सर्वतोमुखी प्रचारना परिणामे नित्य स्नान-विलेपननो प्रचार सार्वत्रिक थई गयो. अमुक गच्छवालाओना. एकदैशिक विरोधो हता ते पण धीरे धीरे शांत थई गया. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003118
Book TitleJina Pooja Paddhati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherK V Shastra Sangrah Samiti Jalor
Publication Year1957
Total Pages58
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy