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[१४] ज आप्युं छे, पंचोपचारी तथा अष्टोपचारी आ बने पूजाओगें निरूपण आ प्रमाणे कयुं छे.
"पंचोक्यारजुत्ता, पूमा अट्ठोवयारकलिया य । इड्डिविसेसेण पुणो, भणिया सब्बोवयारा वि।। तहियं पंचुवयारा, कुसुमक्खयगंधधूवौवेहिं । फलजलनेविजेहिं सहहरूवा भवे सा उ॥" अर्थात्-'पंचोपचार युक्त पूजा, अष्टोपचार सहित पूजा अने ऋद्धिविशेषना योगे सर्वोपचारयुक्त पूजा आम पूजा त्रण प्रकारनी कही छे तेमां पंचोपचारी पुष्प, अक्षत, गंध, धूप, दीपवडे कराय छे अने आने ज नैवेद्य, फल अने जल साथे गणतां अष्टोपचारी पूजा थाय छे."
श्री चंद्रमहत्तरजीकृत अष्टोपचारीनुं निरूपण" वरगंधधूवचुक्खक्खएहि कुसुमहिं पवरदीवहिं । नेविजफलजलेहिं य, जिणपूआ अहहा होइ ॥"
अर्थात्-श्रेष्ठ गंध १, धूप २, अखंड चोखा ३, पुष्प ४, दीपक ५, नैवेद्य ६, फल ७ अने जल ८ ए द्रब्योना प्रकारोथी पूजा आठ प्रकारनी थाय छे.
एज प्रमाणे अनेक पूर्वाचार्योए अष्टविध पूजामुं निरूपण कयुं छे. जलपूजा प्रायः छेल्ली जणावी छे अने अष्टप्रकारीमां जलपूजाने स्नानरूपे नहिं पण नैवेद्य, फल ढोक्या पछी निर्मल मधुर ठंडा जले भरीने जलपात्र आगल मूकवानुं विधान
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