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१२ । नीचे अमो दूर चाल्या गया छीए ए वस्तु अम्हारा ध्यानमां छे, पण आम कर्या विना छूटको न हतो. एक समयना केवल अग्निपूजक वैदिको केवी परिस्थितिओने वटावीने समय जतां मूर्तिपूजको बने छे अने आद्य मूर्तिपूजक जैनोथी पण बे डगला आगळ निकले छ एनो इतिहास जाण्या विना जैन मूर्तिपूजाना विकास अने विकारनो इतिहास खरा रूपमा समजी शकाय तेम नथी.
उपरना निरूपणथी समजी शकाशे के एक समय केवल जैन उपासकोना घरोने शोभावती मूर्तिपूजा भारतभरना सभ्य समाजमां पहोंची गई हती, एटलं ज नहिं पण ते जैनोना पाडोसी वैदिकोना घरोमां पांच अने आठ उपचारोने वटावीने अनेक उपचारोना रूपमा फेलाई गई हती, पोताना पाडोसीओनी आ विविध प्रकारनी भक्तिनो प्रभाव जैन उपासकोनां मनो प्रभावित करे, ए स्वाभाविक हतुं. जैन उपदेशकोए गृहधर्मिोनी भावनाने पोपण आपवा खातर पोतानी उपदेशधारा कंईक आगळ वधारीने उत्सयो अने पर्वोना महत्वपूर्ण प्रसंगोने अनुलक्षीने 'स्नानोत्सर' नो उपदेश कर्यो. आ 'स्नानोत्सव' (पहाणामह) ज आगल जतां 'सर्वोपचारी' नामथी प्रसिद्धि पाम्यो. 'स्नानमह' नी उत्पत्ति पण २५००२७०० सो वर्ष पछीनी तो नथी ज. जैन सूत्रोनी पंचांगीमां एना 'व्हाणमह' नामथी उल्लेखो मले छे. ए बधुं होवा छतां पण 'हाणमहो' के सर्वोपचारी पूजाओ जैन उपासकोना नित्य
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