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________________ ३२२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण साम्ययोग की साधना साम्ययोग के बिना अन्य कलाएं अधूरी हैं साम्य-संदेश सिंहपुरुष आचार्य भिक्षु के जीवन की स्मृति सुन्दर-सात्त्विक जीवन सुख और शान्ति सुख का स्रोत-आत्म-विसर्जन सुख का हेतु-धर्म सुख-दुःख की कुंजी मनुष्य के हाथों में सुख बनाम दुःख सुख संयम से आता है सुधरने के तीन मार्ग सुधरो और सुधारो सुधार का प्रारंभ स्वयं से हो सुधार का सूत्र सृष्टि की विचित्रता का हेतु सेवा सोचो, समझो और सही प्रयोग करो' स्थिरयोगी और गुरुभक्त स्याद्वाद स्वतन्त्रता स्वतन्त्रता का आनन्द स्वतन्त्रता का महत्त्व स्वतन्त्र भारत और जीवन स्वप्न साकार बने स्वयं की शक्ति का ज्ञान कर कृत्रिम बंधनों का परित्याग करें स्वयं पर अनुशासन स्व शक्ति का जागरण स्वस्थ परम्परा को निभाना अन्धानुकरण नहीं २६ दिस० ७१ ३ सित. ६७ २८ अप्रैल ६८ ३ अक्टू० ५४ १५ जून ६९ ५ अप्रैल ७० २५ अप्रैल ७१ २ मई ७१ ३० अक्टू० ६६ १७ मई ६४ २३ मार्च ५८ ८ जून ६९ २९ नव० ६४ २१ जून ७० १८ अग० ५७ ११ मई ६९ १४ मई ५३ ९ मई ७१ १४ सित० ६९ मई ४९ वि० जुलाई १९४७ ९ अग० ७० अग० ५० जुलाई-अग० ४९ ७ सित०८० २२ नव० ५९ २ नव० ६९ ११ अप्रैल ७१ २३ मई ७१ १. ३०-८-७० रायपुर । २. १-१-७० वल्लारी। ३. १०-७-५७ सुजानगढ़ । ४. ९-८-६७ अहमदाबाद । ५. २३-१०-६८ मद्रास । ६. १५-६-६७ अहमदाबाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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