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________________ परिशिष्ट २ ३१५ लोकतंत्र नेताओं की पसंदगी का परिणाम है लोक व्यवस्था का एक तत्त्व : धर्मास्तिकाय लोगों के मन भय से आशंकित हैं वक्ता की योग्यता वक्ता के गुण वर्तमान की ओर देखें वर्तमान के संदर्भ में नैतिकता वर्तमान को देखो वर्तमान को शुद्ध रखना होगा वर्तमान भौतिकवादी युग में धर्म वर्तमान युग और मानव वर्तमान समस्याओं का समाधान वर्धमान महोत्सव वास्तविक जैन कौन ? विकार का परित्याग; मोक्ष का हेतु विकारों के दलदल से भलाइयों के राजमार्ग पर विकास का हेतु विकास दुर्लभ है, विनाश सुगम विकृति एक की : परिणाम सबको विचार और व्यवहार में एकता विचार-स्वतंत्रता विचित्र प्रकार के शस्त्र विज्ञान का युग विदेशों में जैन धर्म की योजना विद्या और अविद्या विद्या का लक्ष्य क्या है ? विद्या की वास्तविक शोभा : विनय, विवेक और आचार विद्यार्थियों का सही निर्माण विद्यार्थी जीवन ८ अक्टू० ६७ ७ फर० ६० १४ जून ६४ १६ फर० ६९ २३ जन० ७२ २१ दिस० ५८ २२ मार्च ७० १३ जन० ७४ २ नव० ६९ २८ जुलाई ६८ वि० ३० अक्टू० ५२ १० जुलाई ५५ २२ फर० ८१ २५ जुलाई ६५. १९ जुलाई ५९ १७ जन० ७१ २१ दिस० ६९. ३१ अग० ६९ ९ अग० ७० वि० २६ जुलाई ५१ जुलाई ६९ अप्रैल ६९ ३ अग० ६९. २९ दिस०६८ ८ फर० ७० १५ दिस० ५७ ४ जन० ५९ सित० ६९ नव० ६९ १. २५-६-६७ अहमदाबाद । २. १८-१-८१ । ३. ९-१०-६७ अहमदाबाद । ४. २४-१२-५८ काशी विश्वविद्यालय, बनारस । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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