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________________ परिशिष्ट २ २९७ आत्मनिर्भरता आत्मपथ का निर्माण आत्मवाद आत्मवाद और विद्यार्थी समाज* आत्म विजेता ही सच्चा वीर आत्मशुद्धि के साथ जनशुद्धि आत्म-समाधि का मार्ग-आर्जव' आत्म-सुरक्षा आत्महत्या के दो पहलू आत्महत्या महापाप है आत्मा एक त्रैकालिक सत्य है आत्मा और दया दान आत्मा का भस्तित्व श्रद्धागम्य है आत्मा का स्वरूप आत्मानुशासन आत्मा सबमें है आत्माभिमुखता-साधुता आत्मिक स्वतन्त्रता ही सुख व शान्ति का मार्ग है आदर्श जीवन का नैतिक मूल्य" आदर्श समाज-रचना के लिए आदर्श ही जीवन का सच्चा तीर्थ है आधि-व्याधि का मूल आध्यात्मिक जगत में पूंजी का कोई मूल्य नहीं आध्यात्मिकता की पृष्ठभूमि आन्तरिक स्वच्छता आनन्द का मार्ग : मुक्ति आनन्द का स्रोत : संयम आप अपने को न भूल जाएं १० अक्टू० ७०/१८ अक्टू० ७० ___ मई ४९ ४ मई ६९/४ नव० ६२ २१ फर० ५४ २५ जन० ५९ ५ जुलाई ५९ २३ नव० ६९ ३१ अक्टू० ७१ १६ अप्रैल ५३ ७ मार्च ६५ नव० ६९ मार्च ५१ १३ अग० ६१ २७ अप्रैल ६९ १९ नव० ६७/२७ जुलाई ६९ १५ मार्च ६४ २४ अग० ७५ वि. २३ अग० ५१ २० जन० ५७ १२ दिस० ७१ २७ दिस० ६४ २१ दिस० ८० वि० ३० अग० ५१ २२ जुलाई ७९ १४ नव० ७१ ४ अप्रैल २ २ जन० ७२ ५ फर० ६१ १. ७-८-६७ अहमदाबाद । २. १६-९-५३ जोधपुर । ३. १-९-६७ अहमदाबाद । ४. ९-११-६८ मद्रास। ५. २-४-५३ बीकानेर । ६. ५-८-६८ अहमदाबाद । ७. २८-१२-५७ ८.१०-११-६८ मद्रास । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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