SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन ही लोकमंगल की भावना से संलग्न हो जाता है । जैनेन्द्र जो अपने पथ की सभी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष बाधाओं को चुनौती देता हुआ सभी आघातों को हृदय पर झेलता हुआ लक्ष्य तक पहुंचता है, उसी को युगस्रष्टा साहित्यकार कह सकते हैं । महादेवी वर्मा "लेखकों की मसि शहीदों की रक्त बिन्दुओं से अधिक पवित्र है"हजरत मुहम्मद की ये पंक्तियां ऐसे ही प्रेरक एवं सजीव साहित्यकारों के लिए लिखी गयी हैं। डॉ० प्रभुदयाल डी० वैश्य ने समाज की दृष्टि से साहित्यकार को तीन वर्गों में बांटा है-१. प्रतिक्रियावादी २. सुधारवादी ३. क्रान्तिकारी। प्रथम वर्ग का साहित्यकार समाज की सम्पूर्ण मान्यताओं एवं व्यवस्थाओं को ज्यों की त्यों स्वीकार कर लेता है। सामाजिक त्रुटि को देख कर भी उसकी उपेक्षा करना हितकर समझता है। दूसरे वर्ग के अंतर्गत वे साहित्यकार आते हैं जो सामाजिक त्रुटियों को देखते अनुभव करते हैं पर उन्हें विनष्ट न करके सुधार का प्रयत्न करते हैं। सुधार में उनकी समझौतावादी वृत्ति होती है। तीसरे वर्ग के अन्तर्गत वे साहित्यकार हैं जो कांतद्रष्टा तथा परिवर्तनवादी हैं। वे न केवल सामाजिक विषमताओं एवं त्रुटियों की तीव्र आलोचना करते हैं, अपितु उन्हें मिटाने का भी भरसक प्रयत्न करते हैं। ऐसे व्यक्तियों का सदा समाज द्वारा विरोध होता है। आचार्य तुलसी को तीसरी कोटि के साहित्यकारों में परिगणित किया जा सकता है। उन्होंने अपनी लेखनी से समाज में फैले विघटन, टूटन, अनास्था एवं अविश्वास के स्थान पर नया संगठन, एकता, आस्था और आत्मविश्वास भरने का प्रयत्न किया है। समाज की विकृतियों एवं परम्परा पोषित अंधरूढ़ियों को केवल दर्शाया ही नहीं, उसे मांजकर, निखारकर परिष्कृत एवं व्यवस्थित रूप देने का सार्थक प्रयत्न किया है। इस क्रांतिकारी परिवर्तन के पुरोधा होने से उन्हें स्वत: युगप्रवर्तक का खिताब मिल जाता है। उन्होंने सामाजिक जीवन के उस पक्ष को प्रकट करने की कोशिश की है, जो नहीं है पर जिसे होना चाहिए । वे इस बात को मानकर चलते हैं कि साहित्यकार मात्र छायाकार या अनुकृतिकार नहीं होता है वरन् स्रष्टा होता है । स्रष्टा होने के कारण अनेक संघर्षों को झेलना भी उसकी नियति होती है। उनकी निम्न पंक्तियां इसी सचाई को उजागर करने वाली हैं-- १. साहित्य : समाज शास्त्रीय संदर्भ, पृ० १४५-१४६ hchcho Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy