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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
नहीं उठाता बल्कि उनका समाधान तथा नया विकल्प भी प्रस्तुत करता है, जिससे पाठक सहजतया मानवीय मूल्यों को अपने जीवन में स्थान दे सके । बुराई को देखकर वे कहीं भी निलिप्त द्रष्टा नहीं बने प्रत्युत् हर त्रुटि के प्रति अंगुलिनिर्देश करके समाज का ध्यान आकृष्ट किया है। उनका साहित्य संघर्ष करते मानव में शांति तथा न्याय के प्रति अदम्य उत्साह और उल्लास पैदा करता है। संक्षेप में आचार्य तुलसी के साहित्य के उद्देश्यों को निम्न बिंदुओं में समेटा जा सकता है
० कांता सम्मत उपदेश द्वारा व्यक्ति-व्यक्ति का सुधार ० मन में कल्याणकारी भावों की जागृति • जीवन के सही लक्ष्य की पहचान तथा मानवीय आदर्शों की
प्रतिष्ठा । ० भावचित्र द्वारा पाठक के मन में सरसता पैदा करना। ० किसी विचार या सिद्धांत का प्रतिपादन । ० पुराने साहित्य को नवीन शैली में युगानुरूप प्रस्तुत करना जिससे साहित्य की मौलिकता नष्ट न हो, नई पीढ़ी का मार्गदर्शन हो
सके तथा स्वाध्याय की प्रवृत्ति भी बढ़े। ० समाज में गति एवं सक्रियता पैदा करना । ० भौतिकवाद के विरुद्ध अध्यात्म एवं नैतिक शक्ति की प्रतिष्ठा ।
निष्कर्षतः उनके साहित्य का मूल उद्देश्य यही है कि जन-जीवन को चरित्रनिष्ठा, पवित्रता, मानवता, सदभावना और जीवनकला का सक्रिय प्रशिक्षण मिले। साहित्यकार
साहित्यकार किसी भी देश या समाज का अग्रेगावा होता है । वह समाज और देश को वैचारिक पृष्ठभूमि देता है, जिसके आधार पर नया दर्शन विकसित होता है । वह शब्द शिल्पी ही साहित्यकार कहलाने का गौरव प्राप्त करता है, जिसके शब्द मानवजाति के हृदय को स्पंदित करते रहते हैं। साहित्यकार के स्वरूप का विश्लेषण स्वयं आचार्यश्री तुलसी के शब्दों में यों उतरता है- "साहित्यकार सत्ता के सिंहासन पर आसीन नहीं होता, फिर भी उसकी महत्ता किसी सम्राट या प्रशासक से कम नहीं होती। शासक के पास दंड होता है, कानून होता है, जबकि साहित्यकार के पास लेखनी होती है और होता है मौलिक चिंतन एवं पैनी दृष्टि । कहा जा सकता है कि साहित्यकार के शब्द समाज की विसंगतियों एवं विकृतियों के विरुद्ध वह क्रांति पैदा कर सकते हैं, जो बड़े से बड़ा कुबेरपति या सत्ताधीश भी नहीं कर सकता। विनोबाभावे साहित्यकार को देर्वा केष रूप में स्वीकार करते हैं, जिसके
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