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________________ जीवनसूत्र १४४ २७३ मनहंसा आगे की खोए बूंद बूंद २ प्रेक्षा कुहासे प्रवचन ११ १४६ १७७ १४१ १६२ दीया मंजिल १ मंजिल १ २३५ ३० सहने की सार्थकता है समभाव समता का दर्शन समता की साधना तितिक्षा और साधना जीवन में समत्व का अवतरण विषमता की धरती पर समता की पौध सुख का मार्ग सेवा साध्य तक पहुंचने का हेतु : सेवाभाव सेवा का महत्त्व वैयावृत्त्य : कर्मनिर्जरण की प्रक्रिया सच्ची सेवा स्वतंत्रता स्वतंत्रता क्या है ? स्व की अनुभूति ही सच्ची स्वतंत्रता मानसिक स्वतंत्रता पराधीन सपनहु सुख नाही स्वतंत्रता : एक सार्थक परिवेश स्वतंत्रता का मूल्य स्वतंत्रता की चाह, धर्म की राह स्वतंत्र चिंतन का मूल्य स्वतंत्र भारत के नागरिकों से स्वतंत्र चिंतन का अभाव स्वतंत्रता में अशांति क्यों ? सूरज ११५ प्रगति की प्रज्ञापर्व ज्योति के प्रवचन ४ राज अतीत का प्रवचन ११ गृहस्थ जन जन मुक्तिपथ संभल १४३ १४७ २०५ १५८ १. २९-५-६६ सरदारशहर २. २-९-६५ दिल्ली ३. ९-१-५४ राजियावास ४. २०-६-७७ लाडनूं ५. २१-१०-८६ सरदारशहर ६. ५-४-५५ औरंगाबाद ७. २२-७-७७ लाडनूं ८. २४-२-५४ सिरियारी ९. १९-८-५६ सरदारशहर, (अणुवत प्रेरणा समारोह) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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