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आ० तु० साहित्य : एक पर्यवेक्षण
संभल
७८
१६१
१५०
मुखड़ा दोनों हाथ वैसाखियां जागो! जागो ! सूरज प्रवचन १०
१०७
१२७
२१९
२४
जीवन में संयम का स्थान' संस्कार निर्माण कितना जटिल : कितना सरल संस्कार निर्माण की यात्रा अनमोल धरोहर उपासना कक्ष और संस्कार निर्माण व्यक्ति निर्माण और धर्म अच्छा संस्कार सुसंस्कारों को जगाया जाए समता कैसे खुलेगी भीतर की आंख समत्व के द्वार से नहीं होता है पाप का प्रवेश सहिष्णुता का कवच जो सहना जानता है, वह जीना जानता है जो सहता है, वह रहता है सहना आत्म धर्म है जो चोटों को नहीं सह सकता, वह प्रतिमा
नहीं बन सकता समता की पौध प्रियता में उलझ नहीं जीवन का शाश्वत क्रम : उतार चढ़ाव साधना का मार्ग : तितिक्षा' समता का दर्शन समता का प्रयोग समत्व दृष्टि मध्यस्थ रहें
१७०
लघुता लघुता वैसाखियां जब जागे लघुता खोए
१०४
६
प्रज्ञापर्व उद्बो/समता खोए प्रवचन ५
३१/३१
o
६
m
मंजिल १
x
सोचो ! ३ खोए मंजिल १ प्रवचन ४
१५८
२५
१. २२-३-५६ बोरावड़। २. १-१०-६५ दिल्ली ३. १७-१०-६५ दिल्ली ४. २३-५-५५ एरण्डोल ५. १३-७-७८ गंगाशहर
६. २४-११-७७ लाडनूं ७. २-११-७६ सरदारशहर ८. ३०-१-७८ सुजानगढ़ . ९. ३-५-७७ चाडवास १०. २८-७-७७ लाडनूं
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