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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण वैसाखियां वैसाखियां राज राज/वि. वीथी राज/वि. वीथी राज/वि. वीथी १६३ १७०/६१ u १७८ m G प्रज्ञापर्व av s X १५३ निर्माण सम्यग् दृष्टिकोण का उपाय की खोज वर्तमान में जीना अध्यात्म साधना की प्रतिष्ठा आत्माभिमुखता जीवन का परमार्थ वाहरी दौड़ शांति प्रदान नहीं कर सकती दुनिया एक सराय है। अन्तर् निर्माण सच्चे सुख का अनुभव स्वयं के अस्तित्व को पहचानें आत्मगवेषणा का महत्त्व आत्मदर्शन की प्रेरणा आत्मविकास और उसका मार्ग भीड़ में भी अकेला अध्यात्म की लौ जलाइए जीवन विकास और युगीन परिस्थितियां सबसे बड़ा चमत्कार दुःख का हेतु : ममत्व अपने आपकी सेवा असली आजादी स्वयं की पहचान अस्तित्व का प्रश्न निष्काम कर्म और अध्यात्मवाद वास्तविक सौन्दर्य की खोज अध्यात्म पथ और नागरिक जीवन २१९ १२६ मंजिल १ संभल संभल प्रवचन ८ नवनिर्माण १५८ शांति के शांति के खोए १४३ शांति के प्रवचन ९ १९७ सोचो !३ २५६ प्रवचन ९ प्रवचन ९ १५२ प्रवचन ९ मंजिल २ राज/वि. दीर्घा १५३/१०२ राज/वि. दीर्घा १४३/१०८ मंजिल २ ८५ प्रवचन ११ १८७ ७८ १५४ २२ १. २२-११-७६ चूरू । '२. ८-३-५६ अजमेर । ३. १९-३-५६ बोरावड़ । ४. १२-८-७८ गंगाशहर । ५. २९-१२-५६ दिल्ली। ६. १९-९-५२ रोटरी क्लब जोधपुर ७. २३-७-५३ जोधपुर । ८. २-८-५३ जोधपुर । ९. १६-६-७८ जोरावरपुरा। १०. १९-४-५३ गंगाशहर । ११. ३०-६-७६ राजलदेसर । १२. ६-१०-७६ सरदारशहर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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