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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
अमृत महोत्सव आचार्य तुलसी की धर्मशासना के ५० वर्ष पूर्ण होने पर समाज द्वारा विशाल स्तर पर 'अमृत महोत्सव' की आयोजना की गयी। इस संदर्भ में हुए विविध रचनात्मक कार्यक्रमों का लेखा-जोखा तथा आचार्य तुलसी के विविध विषयों पर कान्त विचारों की प्रस्तुति इस पत्रिका में है। यह केवल पत्रिका नहीं, बल्कि इसे रचनात्मक एवं संग्रहणीय ग्रंथ कहा जाए तो अत्युक्ति नहीं होगी। इसकी संयोजना में भाई महेन्द्र कर्णावट का अथक श्रम बोल रहा है। उपसंहार
अनेक ग्रंथ लिखे जाने के बावजूद भी ऐसा लगता है कि आचार्य तुलसी के व्यक्तित्व के अनेक पहल ऐसे हैं, जो अभी तक अनछुए हैं । आचार्य तुलसी को जानने और समझने की ललक उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है ।
___आचार्य तुलसी का हर क्षण एक अलौकिक नवीनता, पवित्रता और कल्याणवाहिता से अनुप्राणित है, इसीलिए उनकी रमणीयता हर क्षण प्रवर्धमान है । उनकी भावधारा में शंख सी धवलिमा, मधु सी मधुरिमा और आदित्य सी अरुणिमा एक साथ दर्शनीय है। उनके चिन्तन और विचारों में अमाप्य ऊंचाई और अतल गहराई है । भीष्म के व्यक्तित्व को प्रतिध्वनित करने वाली दिनकर की निम्न पंक्तियों को कुछ अंतर के साथ आचार्य तुलसी के लिए उद्धृत किया जा सकता है.----
ब्रह्मचर्य के व्रती, धर्म के महास्तंभ बल के आगार । परम विरागी पुरुष, जिसे गाकर भी गा न सके' संसार ॥
१. पाकर भी पा न सका (कुरुक्षेत्र
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