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________________ २६२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण वक्तव्यों का सुन्दर समाकलन प्रस्तुत पुस्तक में हुआ है। जन-जन के बीच, आचार्य तुलसी भाग १.२ ___ मुनि सुखलालजी द्वारा लिखित इन दो लघु यात्रावृत्तों में राजस्थान, उत्तरप्रदेश तथा बंगाल (कलकत्ता) की यात्रा का वर्णन है। लगभग ३६ वर्ष पूर्व प्रकाशित ये दोनों पुस्तकें ऐतिहासिक दृष्टि से अनेक तथ्यों एवं संस्मरणों को अपने भीतर समेटे हुए हैं। यह यात्रा अणुव्रत आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाने में काफी कामयाब रही, ऐसा इन ग्रन्थों से स्पष्ट है। बढ़ते चरण मुनि श्रीचंदजी 'कमल' को गुरुचरणों में रहने का अलभ्य अवसर मिलता रहा है । 'बढ़ते चरण' ग्रन्थ में उन्होंने आचार्य तुलसी की ४० दिनों की यात्रा का वर्णन प्रस्तुत किया है । सन् १९५९ में बंगाल और बिहार की पदयात्रा के दौरान घटी घटनाओं, अनुभवों एवं संस्मरणों को इस पुस्तक में सरल एवं सरस भाषा में प्रस्तुत किया है। पदचिह्न मुनि श्रीचंद 'कमल' द्वारा लिखित इस पुस्तक में १९६२,६३ की यात्रा का वर्णन है। यह यात्रा देशनोक से प्रारम्भ होकर राजनगर में सम्पन्न होती है । लगभग ४०० पृष्ठों की इस पुस्तक में मुनि श्रीचंदजी ने अनेक कार्यक्रमों, घटनाओं एवं क्रांतिकारी प्रवचनों का भी समावेश किया है। पुस्तक के नाम की सार्थकता इस बात से है कि आचार्यश्री के 'पदचिह्न' न केवल इस धरती पर अपितु यात्रा के दौरान लोगों के दिलों में भी अंकित हुए हैं। जोगी तो रमता भला मुनि सुखलालजी द्वारा लिखित यह यात्रावृत्त सन् १९८१ से १९८६ तक के यात्रापथ की घटनाओं को अपने भीतर समेटे हुए है। आचार्यश्री के आस-पास प्रतिदिन अनेकों संस्मरण घटित हो जाते हैं पर इस दृष्टि से मुनिश्री ने संभवतः इतना ध्यान नहीं दिया। यदि इस ग्रन्थ में उनके संस्मरणों की पुट रहती तो यह ग्रन्थ और भी अधिक रोचक एवं प्रेरक रहता । बीच-बीच में कुछ महत्त्वपूर्ण भेटवार्ताएं तथा विशेष कार्यक्रमों की रिपोर्ट भी संकलित है। लेखक ने इस ग्रन्थ को यात्रावृत्त न बनाकर विचारप्रधान अधिक लिखा है, जैसा कि स्वकथ्य में वे स्वयं स्वीकारते हैं। आचार्य तुलसी के विचारों की सरस प्रस्तुति लेखक ने की है, उसमें कोई सन्देह नहीं है। कहा जा सकता है कि सभी यात्रा-लेखकों ने यात्रा-काल में आचार्य तुलसी के साहस, आत्मविश्वास, मनोबल एवं प्रतिकूल परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लेने की क्षमता एवं धैर्य का सजीव एवं यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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