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________________ २२२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण का समन्वय मेरा प्रिय विषय है। जब मैं धर्मों में परस्पर टकराव देखता हूं तो मुझे वेदना होती है । धर्म की पृष्ठभूमि मैत्री है, अहिंसा है और करुणा ___ इसमें आचार्य तुलसी ने साहित्यिक शैली में अनेक रूपकों द्वारा धार्मिक उदारता को प्रस्तुति दी है। उसका एक निदर्शन द्रष्टव्य है--. "समुद्र मेरे लिए है पर वह केवल मेरे लिए नहीं है क्योंकि वह महान् है, असीम है । मेरा घड़ा केवल मेरा हो सकता है, क्योंकि वह लघु है, ससीम इस पुस्तक में अठारहवें अखिल भारतीय अणुव्रत सम्मेलन का दीक्षांत प्रवचन भी समाविष्ट है । इस अवसर पर प्रदत्त मोरारजी देसाई का भाषण भी इसमें सम्मिलित है। इस प्रकार यह पुस्तिका अहिंसा के विषय में नए विचारों को प्रकट करने वाली महत्त्वपूर्ण कृति है । धवल समारोह जैन परम्परा की प्रभावक आचार्य-श्रृंखला में आचार्य तुलसी का आचार्यकाल एक कीर्तिमान है । उनका नेतृत्व ही दीर्घकालीन नहीं, अपितु उस काल में हुये नवोन्मेषों की श्रृंखला भी बहुत लम्बी है । उनके आचार्यकाल के २५ वर्ष पूरे होने पर समाज ने 'धवल समारोह' की आयोजना की। इस अवसर पर उनका एक विशिष्ट प्रवचन 'धवल समारोह' के नाम से प्रकाशित हुआ । इस लेख का तेरापंथ इतिहास की दृष्टि से ही महत्त्व नहीं, वरन् सम्पूर्ण मानवजाति को भी इसमें नया मार्गदर्शन दिया गया है। वे समाज से क्या अपेक्षा रखते हैं, इसका निर्देश इस आलेख में स्पष्ट भाषा में है । लेख के अन्त में वे स्वयं अपने संकल्प की अभिव्यक्ति इन शब्दों में करते हैं-"मैं संकल्प करता हूं कि मैंने जो किया, उससे और अधिक करूं । मैंने जो पाया, उससे और अधिक पाऊं । मुझसे जनता को जो मिला, उससे और अधिक मिले । मेरा जीवन अपने गण, राष्ट्र और समूचे विश्व के लिये हितकर हो, यही मेरी मंगलकामना है।" .. सम्पादित होने के बाद इस ऐतिहासिक प्रवचन का कथ्य इतना सशक्त हो गया है कि दर्पण की भांति तेरापंथ समाज इसमें अपने चहुंमुखी विकास का दर्शन कर सकता है। ३५ साल पूर्व दिया गया यह प्रवचन आज भी उतना ही प्रासंगिक एवं महत्ता लिये हुये है। इस विस्तृत प्रवचन में एक युग, एक जीवन और एक राष्ट्र अपने आपमें पूर्ण रूप से विद्यमान नया मोड़ . अणुव्रत आंदोलन के अन्तर्गत नए मोड़ के द्वारा आचार्य तुलसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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