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________________ १८८ आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण 729 तुलसी विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था के पक्षधर हैं। क्योंकि अधिक संग्रह उपभोक्ता संस्कृति को जन्म देता है । इस संदर्भ में उनका मंतव्य है कि जिस प्रकार बहता हुआ पानी निर्मल रहता है, उसी प्रकार चलता हुआ अर्थ ही ठीक रहता है । " अर्थ का प्रवाह जहां कहीं रुकता है, वह समाज के लिए अभिशाप और पीड़ा बन जाता है । अतः स्वस्थ, संगठित, व्यवस्थित एवं संवेदनशील समाज में अर्थ के प्रवाह को रोकना सामाजिक विकास में बाधा है । संग्रह के बारे में आचार्य तुलसी का चिंतन है - "मेरी दृष्टि में संग्रह भीतर ही भीतर जलन पैदा करने वाला फोड़ा है और वही जब नासूर के रूप में रिसने लगता है तो अपव्यय हो जाता है ।" संग्रह के कारण होने वाले सामाजिक वैषम्य का यथार्थ चित्र उपस्थित करते हुए वे समाज को सावधान करते हुए कहते हैं- "एक ओर जनता के दुःख-दर्द से बेखबर विलासिता में आकंठ डूबे हुए लोग और दूसरी ओर जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं से भी वंचित अभावों से घिरे लोग । सामाजिक विषमता की इस धरती पर समस्याओं के नए-नए झाड़ उगते ही रहेंगे । "B 113 आर्थिक वैषम्य की समस्या के समाधान में वे अपना मौलिक चिंतन प्रस्तुत करते हैं- "मेरा चिंतन है कि अतिभाव और अभाव के मध्य से गुजरने वाला समाज ही तटस्थ चिंतन कर सकता है, अन्यथा वहां विलासिता और पीड़ा जन्म लेती रहती है ।" इसी बात को कभी-कभी वे इस भाषा में भी प्रस्तुत कर देते हैं- "गरीबी स्वयं बुरी स्थिति है, अमीरी भी अच्छी स्थिति नहीं है । इन दोनों से परे जो त्याग या संयम है, इच्छाओं और वासनाओं की विजय है, वही भारतीय जीवन का मौलिक रूप है और इसी ने भारत को सब देशों का सिरमौर बनाया था । ४ अपरिग्रह के प्रबल पक्षधर होने पर भी वे पूंजीपतियों के विरोधी नहीं हैं। पर पूंजीवादी मनोवृत्ति पर समय-समय पर प्रहार करते रहते हैं— " पूंजीवादी मनोवृत्ति ने जहां एक ओर मानव के वैयक्तिक और पारिवारिक जीवन को विघटित कर डाला है, व्यक्ति को भाई-भाई के खून का प्यासा बना दिया है, पिता पुत्र के बीच वैमनस्य और रोष की भयावह दरार पैदा कर दी है, वहां सामाजिक और सार्वजनिक जीवन पर भी इसने करारी १. एक बूंद : एक सागर, पृ० १९१ । २. अणुव्रत के आलोक में, पृ० ९३ । ३. एक बूंद : एक सागर, पृ. १५६२ । ४. २१-११-५४ के प्रवचन से उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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