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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण महिला समाज के समक्ष वे इस भाषा में रखते हैं- "महिलाओं की शक्ति पर मुझे पूरा भरोसा है । जिस दिन मेरे इस भरोसे पर महिलाओं को पूरा भरोसा हो जाएगा, उस दिन सामाजिक चेतना में क्रान्ति का एक नया विस्फोट होगा, जो नवनिर्माण की पृष्ठभूमि के रूप में सामने आएगा।" नारी जाति के प्रति अतिरिक्त उदारता की अभिव्यक्ति कभी-कभी तो इन शब्दों में प्रस्फुटित हो जाती है - "मैं उस दिन की प्रतीक्षा में हूं, जब स्त्रीसमाज का पर्याप्त विकास देखकर पुरुष वर्ग उसका अनुकरण करेगा।'' एक पुरुष होकर नारी जाति के इस उच्च विकास की कामना उनके महिमामंडित व्यक्तित्व का महत्त्वपूर्ण दस्तावेज है। युवक
युवक शक्ति का प्रतीक और राष्ट्र का भावी कर्णधार होता है पर उचित मार्गदर्शन के अभाव में जहां वह शक्ति विध्वंसक बनकर सम्पूर्ण मानवता का विनाश कर सकती है, वहां वही शक्ति कुशल नेतृत्व में सृजनात्मक एवं रचनात्मक ढंग से कार्य करके देश का नक्शा बदल सकती है। आचार्य तुलसी ने युवकों की सृजन चेतना को जागृत किया है। उनका विश्वास है कि देश की युवापीढ़ी तोड़-फोड़ एवं अपराधों के दौर से तभी गुजरती है, जब उसके सामने कोई ठोस रचनात्मक कार्य नहीं होता है। आचार्यश्री ने युवापीढ़ी के समक्ष करणीय कार्यों की एक लम्बी सूची प्रस्तुत कर दी है, जिससे उनकी शक्ति को सृजन की धारा के साथ जोड़ा जा सके। उनकी अनुभवी, हृदयस्पर्शी और ओजस्वी वाणी ने सैकड़ों धीर, वीर, गंभीर, तेजस्वी, मनीषी और कर्मठ युवकों को भी तैयार किया है । आचार्य तुलसी ने अपने जीवन से युवकत्व को परिभाषित किया है। वे कहते हैं० युवक वह होता है, जिसकी आंखों में सपने हों, होठों पर उन सपनों
को पूरा करने का संकल्प हो और चरणों में उस ओर अग्रसर होने का साहस हो, विचारों में ठहराव हो, कार्यों में अंधानुकरण न
हो।" ० जहां उल्लास और पुरुषार्थ अठखेलियां करे, वहां बुढ़ापा कैसे आए ?
___ वह युवा भी बूढ़ा होता है, जिसमें उल्लास और पौरुष नहीं होता। आचार्य तुलसी की युवकों के नवनिर्माण की बेचैनी को निम्न शब्दों में देखा जा सकता है- "मुझे युवकों के नवनिर्माण की चिन्ता है, न कि उन्हें शिष्य बनाए रखने की। मैं युवापीढ़ी के बहुआयामी विकास को देखने के लिए बेचैन हूं। मेरी यह बेचैनी एक-एक युवक के भीतर उतरे, उनकी ऊर्जा का केन्द्र प्रकम्पित हो और उस प्रकम्पन धारा का उपयोग सकारात्मक काम १. एक बूंद : एक सागर, पृ० ११४५ ।
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